सन १९८४ के अक्तूबर में एक अत्यंत दहला-देने वाली घटना के कारण रचना का पाठ कहीं भी नहीं किया जा सका था, नए-पुराने कलेवर में प्रस्तुत है | प्रथम श्रोता मेरे स्वर्गवासी पिताजी थे, उन्हें ये बहुत पसंद थी | नमन उन्हें |
म्याऊँ के सर ताज है.
म्याऊँ के सर ताज है.
सुअर करे दिन रात सफाई, गधे खुरों से सड़क पाटते |
नगर सुरक्षा कुत्ते करते भौंक- भौंक के रात काटते|
चोर - उचक्के - पाखंडी लोगो को ऐसी डांट डांटते |
गिड़-गिड़ करके भीख मांगते, गिर-गिर करके चरण चाटते--
कहते इसमें राज़ है |
म्याऊँ के सर ताज है ||जाति-प्रथा मजबूत यहाँ पर संस्कार सोलह होते |
हंसे लोमड़ी कसे व्यंग खर औ सियार दर दर रोते |
न्याय निराले काले भालू वादी-प्रतिवादी-दर पोते |
लड़ते - भिड़ते उमर काटते अंत दोऊ दीदा खोते --
न्याय बिधा पर नाज़ है |
म्याऊँ के सर ताज है ||
कहीं भाग्य से टूटे छींके, छींके यहाँ तोडती बिल्ली |
चौबिस चूहे घंटी लेकर कहते बहुत दूर है दिल्ली |
हदबंदी की गीदड़ भभकी, मिलती बिना तेल की तिल्ली |
नलबंदी पर खास जोर है दो से हद पिल्ले या पिल्ली |
कहने में क्या लाज है |
म्याऊँ के सर ताज है ||
म्याऊँ के सर ताज है ||
नहीं तराजू बाँट यहाँ पर, बन्दर बंदरबांट बांटते |
चूहों ने है भरी तिजोरी मोलभाव बिन मॉल छांटते |
ऊन छोड़ खादी को पहने, भेड़-भेड़िया खीर चाटते |
देशी घी के कटे पराठे , सम्मलेन में सांठ गांठते |
युवा मंच नाराज़ है |
म्याऊँ के सर ताज है ||
यहाँ टाइगर खेती करते सीमा पर चीते रहते |
शीत लहर लू वर्षा सहते विपदा में जीते रहते |
सिंह यहाँ का बना मुखौटा, सदा उसे सीते रहते |
नस्ल यहाँ हाथी सफ़ेद की दारू-रम पीते रहते--
बाज न आता बाज है |
म्याऊँ के सर ताज है ||
गंधी इत्र चित्र कंगारू दारू ब्लैक हार्स का धंधा |म्याऊँ के सर ताज है ||
चम्गीदर आडिओ-वीडियो उल्लू करे टार्च को अँधा |
गाय डालडा घी निर्माता बैल बोझ ढोने का धंधा |
भैंसा बैठा करे सवारी साम्यवाद का छिलता कंधा--
प्रतिबंधित आवाज है |
म्याऊँ के सर ताज है ||
म्याऊँ के सर ताज है ||
चुगुल-खोर चालक लोमड़ी कुत्तों की अच्छी यारी |
उल्टा सीधा छपने पर, सरे आम पिट जाये बिचारी.
रट्टू तोते पाठ रटाते बना तरीका सरकारी |
बकरे की माँ खैर मनाये तेज करे औजार शिकारी --
कितना व्यथित समाज है |
म्याऊँ के सर ताज है ||
म्याऊँ की एक गाय दुधारू टैक्सों का है जो अधिकार |म्याऊँ के सर ताज है ||
पीने को पाती सपरेटा बछड़े जाते क्रीम डकार |
मोर-मोरनी डिस्को करते गाता गधा राग मल्हार |
एक मंच पर आना होगा कहते सारे रंगे सियार |
जो कि मुश्किल आज है |
म्याऊँ के सर ताज है ||
म्याऊँ के सर ताज है ||
ए जी टू जी महा घुटाले, आदर्शवादी नाम है |
कामन वेल्थ में हेल्थ बनाए खेल नहीं संग्राम है |
आरक्षण की आग लगी इत, उधर नक्सली काम है |
रेल पटरियां कही तोड़ते कही रोड पर जाम है ---
सफ़र पे गिरती गाज़ है |
शाही को शह मिली हुई है सरे आम देखे करतब |म्याऊँ के सर ताज है ||
कांटे चुभा-चुभा के चूसे मौका उसे मिले जब-तब |
खाना-पीना-मौज मनाना लगे हुए है बाकी सब |
म्याऊँ सोच रही गद्दी पर देख बिलौटा बैठे कब-
क्या बढ़िया अंदाज़ है |
म्याऊँ के सर ताज है ||
म्याऊँ के सर ताज है ||
bahut badhiyaa
ReplyDeleteपूरा का पूरा चिडियाघर या कह लो जंगल समेट लिया है"
ReplyDeleteमैं बार-बार आभार, आपका करता हूँ |
ReplyDeleteसोसल एनिमल ही हूँ, जरा सा डरता हूँ ||
बहुत सुन्दर और सटीक..
ReplyDeletemast likha hai ravikar zi
ReplyDeleteयहाँ टाइगर खेती करते सीमा पर चीते रहते |शीत लहर लू वर्षा सहते विपदा में जीते रहते |सिंह यहाँ का बना मुखौटा, सदा उसे सीते रहते |
ReplyDeleteनस्ल यहाँ हाथी सफ़ेद की दारू-रम पीते रहते--
बाज न आता बाज है |
म्याऊँ के सर ताज है ||
सेना के जवानो की शान में आपके शब्द बहुत महत्वपूर्ण हैं.बाकि सब तो है ही कलाई खोलता
सटीक लिखा है .आभार
ReplyDeleteबेहतरीन ।
ReplyDeleteबुत सी विषयों को चुवा है आपने इस रचना में .. सटीक टिप्पणी ...
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच
उम्दा प्रस्तुति, रचनाकार का परिश्रम स्पष्ट दिख रहा है| हर पंक्ति में बहुत कुछ है|
ReplyDeleteaadha sach pe ek behtarin pura sach padhne ke darmyan rakt kosh ke pahredar ne barbas akrist kiya aur aap se parichay ka mauka diya..aapki rachna padkhar bahu accha laga..mere blog pe bhi aapka swagat hai
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