खिलखिलाकर वो हंसीना हंस पड़ी जब जोर से
बिजलियों ने तड़प करके बादलों को खूब धोया |
बादलों के आंसुओं से इस कदर सैलाब आया,
सब्रका झट बांध टूटा कि क़यामत आ गई ||
शुष्क रेगिस्तान जलता, जलजले से यूँ पटा ,
मस्त-काया सा भिगोया वो रुपहला बुर्ज दुबई |
मस्त-काया सा भिगोया वो रुपहला बुर्ज दुबई |
मोती मिला मानुष हिला कि चून गीला हो गया,
जो सून बिन-पानी रहे, पानी हुए पानी हुए |
वे कंटीले झाड़ सारे, खिलखिलाकर हँस पड़े,
वे कंटीले झाड़ सारे, खिलखिलाकर हँस पड़े,
खिल सकेंगे रेत में भी, इश्क के अरुणिम-गुलाब |
आस्मां हरदम जहाँ होता रहा था आसमानी तेल के सूखे कुएं में आज पानी जा घुसा
मंडूक ने टर-टर सुनाई मीन प्यासी मर गई ||
सच में बहुत सुंदर व अच्छी बात बतायी है।
ReplyDeleteसब कुछ फायदा तो नहीं हो सकता है.
ReplyDeleteबारिश का खूब नज़ारा दिखाया है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्द चित्र..
ReplyDeletekavita me nyapan hai...bandishen na milte hue bhi prabhavshali rachna...
ReplyDeleteआस्मां हरदम जहाँ होता रहा था आसमानी
ReplyDeleteपहली दफा वो जिंदगी में इन्द्र-धनुषी हो गया |
bahut adbhut likhte hain aap badhai.
वाह ...लाजवाब प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआस्मां हरदम जहाँ होता रहा था आसमानी
ReplyDeleteपहली दफा वो जिंदगी में इन्द्र-धनुषी हो गया |
जीवन को कितनी शिद्दत से अभिव्यक्त किया है ......!
तेल के सूखे कुएं में आज पानी जा घुसा
ReplyDeleteमंडूक ने टर-टर सुनाई मीन प्यासी मर गई ||
जीवन भी क्या विरोधाभास है .....!
बहुत अच्छी बातें बताई आपने | बहुत सुन्दर रचना |
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रेगिस्तान मे बारिश का क्या सुख मिलता होगा आपने एहसास करा दिया
ReplyDeleteमोती मिला मानुष हिला कि चून गीला हो गया,
ReplyDeleteजो सून बिन-पानी रहे, पानी हुए पानी हुए |
बहुत खूब...बधाई
नीरज
आपने तो दुबई को अपने अंदाज़ मिएँ पेश कर दिया .. बहुत खूब ...
ReplyDeleteमस्त-काया सा भिगोया वो रुपहला बुर्ज दुबई |
ReplyDeleteबुर्ज दुबई हो गया पानी पानी
भविष्य का संकेत तो नहीं दे रहे आप !!!!!!!!!!!!!!!!!!
sabkuch rimjhim rimjhim laga
ReplyDeleteवाह क्या बात, बहुत सुंदर
ReplyDeletebahot maza aaya......
ReplyDeleteखिल सकेंगें रेत में भी इश्क के स्वर्णिम गुलाब .सुन्दर बिम्ब .खामोश अदालत ज़ारी है ."-डॉ नन्द लाल मेहता वागीश .
ReplyDelete(पहली किश्त ). वाणी पर तो बंदिश है ,अब साँसों की बारी है ,
खामोश अदालत ,ज़ारी है .
हाथ में जिसके सत्ता है ,वह लोकतंत्र पर भारी है ,
सभी सयानप गई भाड़ में ,चूहा अब पंसारी है .
खामोश अदालत ज़ारी है .
संधि पत्र है एक हाथ में ,दूजे हाथ कटारी है ,
खौफ में औरत मर्द जवानी ,बच्चों की लाचारी है .
खामोश अदालत ज़ारी है .
(ज़ारी ....)
सहभाव एवं प्रस्तुति :वीरेन्द्र शर्मा (veerubhai1947@gmail.com)