सुन लो मेरे मीत, प्रीत के गीत नहीं बिसराना,
अब अतीत की रीत, जीत कर भीत नहीं कहलाना |
व्यथा कथाएं कहते-कहते हुई लेखनी कुंठित,
अब वियोग्मय रचनाएं तुम, 'रविकर' न रचवाना |
मन-मयूर मेरी मद-मस्ती मग-मग में महकाए,
मधु-मेधा मनहर मन-मंदिर मानस पे छा जाना |
तेरे हित कल मैंने स्वर-सरगम था शाश्वत छेड़ा,
नित-प्रति मधुरिम वाणी से संगीत सुधा सरसाना |
टूटा मेरा करकंगन पर नहीं दुखी है मानस,
पल - पल मेरे प्यारे प्रियतम, ऐसे ही हरसाना ||
अब अतीत की रीत, जीत कर भीत नहीं कहलाना |
व्यथा कथाएं कहते-कहते हुई लेखनी कुंठित,
अब वियोग्मय रचनाएं तुम, 'रविकर' न रचवाना |
मन-मयूर मेरी मद-मस्ती मग-मग में महकाए,
मधु-मेधा मनहर मन-मंदिर मानस पे छा जाना |
तेरे हित कल मैंने स्वर-सरगम था शाश्वत छेड़ा,
नित-प्रति मधुरिम वाणी से संगीत सुधा सरसाना |
टूटा मेरा करकंगन पर नहीं दुखी है मानस,
पल - पल मेरे प्यारे प्रियतम, ऐसे ही हरसाना ||
व्यथा कथाएं कहते-कहते हुई लेखनी कुंठित,
ReplyDeleteअब वियोग्मय रचनाएं तुम, 'रविकर' न रचवाना |
bahut khoob likha hai
टूटा मेरा करकंगन पर नहीं है चिंतित मानस,
ReplyDeleteपल - पल मेरे प्यारे प्रियतम, ऐसे ही हरसाना |
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावों को संजोया है आपने .आभार
ReplyDeleteकोमल कान्त पदावली मनहर भाव लिए आजाना दिन प्रति दिन रविकर ,सबको सरसाना .....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..अनुप्रास अलंकार की छटा देखते ही बनती है ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
ReplyDeleteअस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,