हे नक्सली
अतिशय बली
हे आतंकवादियों की पूरी लश्कर
कोई नया उत्पात मत कर
मंदिर-मस्जिद, मठ-मजार
मत उजार
बस
बस
बस, ट्रेन, जहाज को
बम से उड़ाना
बम से उड़ाना
बन्द करो
मत बार-बार
प्रदेश बन्द करो
बन्द करो तहलका मचाना--
चलो अब मत खलो
एक उपाय बताता हूँ
महीने में कम से कम
दो रेल एक्सीडेंट,
चार बस की टक्कर
एक जहाज या हेलीकाप्टर क्रैश
भूस्खलन, बादल फटना
ठनका या तूफ़ान --
तुम्हे देता हूँ --
किसी एक की जिम्मेदारी ले लेना --
तुम भी खुश
और नो एक्स्ट्रा रिस्क
हाँ
कभी-कभी
सुनामी का कहर
भूकम्प का असर
आग की आफत
भी कर लेना अपने नाम ||
कृपा करो दयानिधि मारन--
kya baat hai :)good one
ReplyDeletevah keya lekha hai aap ne maan ko chu gaya
ReplyDeleteयह तो मन की भड़ास है |
ReplyDeleteअब जबकि उत्तर प्रदेश में भयंकर रेल
दुर्घटना हो ही चुकी थी तो आसाम में
दूसरी करने की क्या जरूरत थी ??
ले लेते इसी की जिम्मेदारी ||
रविकर जी आप कुछ भी कहो वो नहीं मानेंगे?
ReplyDeleteसुनामी का कहर
ReplyDeleteभूकम्प का असर
आग की आफत
भी कर लेना अपने नाम ||
कृपा करो दयानिधि मारन--
kripa ker hi do
कातिल का महिमा मंडन वह जीत रहा ,हर दिन बाज़ी ,
ReplyDeleteमोहन बोले माँजी ,माँ जी .....
बहुत असरदार संदर्भों को झिंझोड़ ती सी रचना .
व्यंग्य का प्रखर रूप ज्वालामुखी सा जागृत .वाह क्या बात है रविकर जी ,.....
राजनीति है ऐसी नटनी /दिल्ली में नटनी का वासा ,साथ मदारी काला चौगा ,
हर नेता है बना दरोगा ,खौफ की ज़द में रात बिरानी ,
दिन भी खुद पर शर्मिन्दा है ,ऐसी काली करतूतों के ,
बीच रहा मैं अब भी ज़िंदा ,
भारत तो जा चुका भाड़ में अब इंडिया की बारी है ,
खामोश अदालत ज़ारी है .
खामोश अदालत ज़ारी है ,दिल्ली का संकेत यही है ,
वाणी पर तो लगी है बंदिश ,अब साँसों की बारी है ,
खामोश अदालत ज़ारी है .
हाथ में जिसके सत्ता है ,वह लोक तंत्र पर भारी है ,
गई सयानाप चूल्हे में ,बस चूहा एक पंसारी है ,
कैसा जनमत किसका अनशन ,हरकत में जब आये शासन ,
संधि पत्र है एक हाथ में दूजे हाथ कटारी है ,खामोश अदालत ज़ारी है ....
व्यंग्य का प्रखर रूप ज्वालामुखी सा जागृत .वाह क्या बात है रविकर जी ,.....नक्सल खुद सरकारी हैं ....
ReplyDeleteराजनीति है ऐसी नटनी /दिल्ली में नटनी का वासा ,साथ मदारी काला चौगा ,
हर नेता है बना दरोगा ,खौफ की ज़द में रात बिरानी ,
दिन भी खुद पर शर्मिन्दा है ,ऐसी काली करतूतों के ,
बीच रहा मैं अब भी ज़िंदा ,
भारत तो जा चुका भाड़ में अब इंडिया की बारी है ,
खामोश अदालत ज़ारी है .
खामोश अदालत ज़ारी है ,दिल्ली का संकेत यही है ,
वाणी पर तो लगी है बंदिश ,अब साँसों की बारी है ,
खामोश अदालत ज़ारी है .
हाथ में जिसके सत्ता है ,वह लोक तंत्र पर भारी है ,
गई सयानाप चूल्हे में ,बस चूहा एक पंसारी है ,
कैसा जनमत किसका अनशन ,हरकत में जब आये शासन ,
संधि पत्र है एक हाथ में दूजे हाथ कटारी है ,खामोश अदालत ज़ारी है ....
गुप्ता जी आप ने बात को नए तरीके से बखूबी कहा है| बधाई|
ReplyDeleteकुण्डलिया छन्द - सरोकारों के सौदे
दयानिधि मारन! मैं तो चौंक गया!
ReplyDeleteदयानिधि मारन - व्यक्ति नहीं बल्कि शाब्दिक अर्थ
ReplyDeletehaha. . bilkul sahi likha hai. . kaash kisi tarah naksaliyon tak ye baat pahunch jaaye. .
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