बंजर धरती से मैंने सोना उपजाया,
कूप और नलकूपों का इक जाल बिछाया ||
जीवन भर ढोया पानी, फिर भी प्यासा मै,
जीवन - संध्या की हूँ , घनघोर निराशा मै ||
देख - भालकर ही मैंने हर कदम उठाया
भटक रहे हर राही को, सदमार्ग दिखाया ||
कस्मे-वायदे-प्यार-वफ़ा की करी बंदगी
पर-सेवा, पर-हितकारी यह रही जिंदगी ||
फिर भी कोई कमी काल सी कसक रही है
अंतस में अन्जानी चाहत सिसक रही है ||
जीवन भर ढोया पानी, फिर भी प्यासा मै,
ReplyDeleteजीवन - संध्या की हूँ , घनघोर निराशा मै ||
ऐसी निराशा भरी बातें भला क्यों ? आपमें सार्थक उर्जा है ...सुन्दर प्रस्तुति
वाह ... यहाँ तो नया रूप है आपका ..
ReplyDeleteबहुत खूब लिखते हैं आप ...
रचना में निहित भावना प्रेरक है।
ReplyDeleteफिर भी कोई कमी काल सी कसक रही है ,अंतस में अनजानी चाहत सिसक रही है .सुन्दर अमन के आलोडन की सार्थक उत्प्रेरक रचना .
ReplyDeleteजीवन भर ढोया पानी, फिर भी प्यासा मै,
ReplyDeleteजीवन - संध्या की हूँ , घनघोर निराशा मै ||
ਰਵਿਕਰ ਜੀ , ਬਧਿਯਾ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਹੈ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦੀ ਫੁਲਕਾਰੀ ਫ਼ਬ ਰਹਿਯਾਂ ਨੇ , ਧਨਵਾਦ ਜੀ /
जीवन भर ढोया पानी, फिर भी प्यासा मै,
ReplyDeleteजीवन - संध्या की हूँ , घनघोर निराशा मै ||
sunder prastuti
kahi dur man me koi kasak reh gayi hai shayed ........bhaupurn rachna ke liye badhai
फिर भी कोई कमी काल सी कसक रही है |
ReplyDeleteअंतस में अनजानी चाहत सिसक रही है |
......................यही अपूर्णता ही तो सम्पूर्णता की ओर ले जाती है
.अन्जानी चाहत.........................'मत बुझाओ प्यास मेरी ,प्यास मेरी जिंदगी है
प्यास में विश्वास है, विश्वास मेरी जिंदगी है '
मन को छूने वाली भावपूर्ण अतिसुन्दर भावाभिव्यक्ति....
ReplyDelete