13 July, 2011

दहली मुंबई ||

ऐयाशी-ऐयारी
विघातक  गुंडई |

घायल दो सौ
मरे भी कई |

बम विस्फोट

दहली मुंबई ||

तो क्या पब्लिक
हिम्मत हार गई ?

नहीं कत्तई नहीं--
और एका भई ||

10 comments:

  1. सटीक लिखा है ..न जाने कब इन सबसे छुटकारा मिलेगा

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  2. तो क्या पब्लिक
    हिम्मत हार गई ?
    नहीं वो कभी नहीं हारती बहुत सामयिक लिखा है रवि जी.

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  3. हताश निराश करने वाला प्रबंध है जो मुंबई की नागरता ,सिविलिती को नष्ट करने पर उतारू है .राज ठाकरे और आतंकियों को एक साथ कैसे झेले मुंबई और आतंकी भी अपने अपने "इन्डियन मुजाहिदीन सेक्युलर ".कर लो कोई इनका क्या कर लेगा अगला अल्प -संख्यक है .

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  4. बुधवार, १३ जुलाई २०११
    सहभावित कविता :आखिर हम चुन कर आये हैं .-डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश ,वीरेंद
    सहभावित कविता :आखिर हम चुन कर आये हैं .-डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश ,वीरेंद्र शर्मा .
    आओ अन्दर की बात कहें ,
    कुछ तो दिल की बात सुनें .
    माना एयर- पोर्ट पहुंचे थे ,हंस -हंस के पत्ते फेंटें थे ,
    मंत्री ओहदे कितने ऊंचे ,ऐंठे साथ में कई अफसर थे ,
    एक नहीं हम कई जने थे ,भीतर से सब चौकन्ने थे ,
    बाबा को देना था झांसा ,झांसे में बाबा को फांसा ,
    बाबा का कोई मान नहीं था ,हम को बस फरमान यही था .
    एक हाथ समझौते का हो, दूजे हाथ में गुप्त छुरी,
    रात में काँप उठी नगरी ,बाबा की सी सी निकली ,
    तम्बू बम्बू सब उखड़े थे ,साड़ी पाजामे घायल थे ,
    झटके में झटका कर डाला ,ऐसा शातिर दांव हमारा ,

    क्या अब भी सरकार नहीं है ,क्या इसका इकबाल नहीं है ,
    जाकर उस बाबा से पूछो ,क्या यही सलवार सही है ,
    हमने परिधान बदल डाले ,नक़्शे तमाम बदल डाले ,
    आखिर चुनकर आयें हैं ,नहीं -धूप में बाल पकाएं हैं ,
    इसके पीछे अनुभव है ,खाकी का अपना बल है ,
    सीमा पर अभ्यास करेंगें ,देश सुरक्षा ख़ास करंगें ,
    सलवारें लेकर जायेंगें ,दुश्मन को पहना आयेंगें ,
    तुम जनता हम मालिक हैं ,रिश्ता तो ये खालिस है ,
    जय बोलो इंडिया माता की ,इंडिया के भाग्य विधाता की ,
    जय कुर्ती और सलवार की ,इंडिया के पहरेदार की .

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  5. अब भाई दिनेश रविकर ऐसे घटा टॉप में इंडिया की हिफाज़त कौन करे .आये दिन मुंबई होंगें .
    खामोश अदालत ज़ारी है ,आज मुंबई कल तेरी बारी है .

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  6. वोट मिला भई वोट मिला ,
    पांच साल का वोट मिला .

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  7. इस तरह की घटना बार -बार दोहराने से तो यही लगता है हमारी सरकार हिम्मत हार चुकी है

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  8. तो क्या पब्लिक
    हिम्मत हार गई ?
    नहीं वो कभी नहीं हारती बहुत सामयिक लिखा है रवि जी.

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  9. बहुत सही कहा.....

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