21 July, 2011

अब घर ३६- गढ़ हुआ--

टुकड़े-टुकड़े हो चुका,  अपना  बड़ा  कुटुम्ब, 
पाक, बांगला ब्रह्म बन, लंका से जल-खुम्ब || 


अब घर छत्तिसगढ़ हुआ, चंडीगढ़ से दूर ,
बना पांडिचेरी सरिस, बिखरा घर भरपूर ||

झारखण्ड बन जिन्दगी, उगे हृदय में शूल,
खनिज सम्पदा तो बहुत,  बाढ़े  किन्तु  बबूल ||
(नक्सल विचार )


नैनों  के  सैलाब  से,  कोसी   करती  रोष,
बाढ़ प्रबन्धन में बहा, सब बिहार का कोष ||
(आंसुओं में सब बह गया )

घोर उड़ीसा हो गया, सूख-साख जल स्रोत्र,
पानी की खातिर करूँ,  मान-मनौवल होत्र ||
(सम्मान के लिए मान-मनौवल )

काश्मीर  किस्मत  हुई, डाका  डाले  पाक,
ख़त्म हुई इज्जत गई,  बन जम्मू-लद्दाक ||
(J & K  में केवल घाटी की  ही इज्जत / मोहल्ले में केवल उनकी )

बादल  सा  दिल फट गया,  बहा  उत्तराखंड,
हुआ नहीं बर्दाश्त फिर, दिल्ली का पाखण्ड ||
(बादल फटने के बाद हुई तबाही, हाई-कमान केवल पाखण्ड करे )

उम्मीदी गुजरात की, आस्था का आगार | 
माँ   शेरावाली    करे ,  मेरा   बेडा   पार  ||
(सुख-समृद्धि सम्पन्नता और शान्ति)

महाराष्ट्र का राज भी,  मचा  रहा  आतंक,
 अंडमान  तन्हा रहे,  रोज मारता डंक ||
(राज दार  /  अकेलापन   )

तेलंगाना  हो  गया, सारा  मध्य प्रदेश,
आंध्रा में फैले  सदा, ईर्ष्या सह विद्वेष ||
(मारकाट / भूख-प्यास और ससुराल में बुराई )

तमिलनाडु अम्मा चली, बाबू का करुणांत |
कर-नाटक का खात्मा,  लड़ते  संत-महंत ||
(सास तीर्थयात्रा, बाबु जी स्वर्ग )  (समस्या-समाधान के लिए टोना-टटका, पूजा पाठ)

हरियाणा-पंजाब  हो,   गुजर  रही है शाम,
अरुणाचल के उदय से, होगा सम आसाम ||
(दारुबाज दोस्तों का साथ)     (नई सुबह ----समाधान )

केरल  के साहचर्य  से, यूपी  के  उत्पात,
बंद हो सकेंगे सभी,  घातों  के  प्रतिघात ||
(पढ़े-लिखे समझदार)    (नोंक-झोंक)

अब तो बस इन्तजार है, संस्कृति हो बंगाल,
काट-पीट कर फेंक दे, वैमनस्य  के  जाल ||
(रास-रंग, बेहतर समझबूझ)  (कूटनीतिक परिदृश्य )

देह   हमारी   हो   गई,   पूरी    राजस्थान,
हरियाली अब कर सके, गंगा का वरदान ||
( विषम परिस्थिति )

जल्दी     गोवा    बनेगी,   लक्षद्वीप   की    रेत,
मणि-मेघा-सिक्किम-दमन, त्रिपुरा-लैंड समेत ||  

22 comments:

  1. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति आप बहुत गूढ़ बाते लिखते हैं रवि जी कई बार तो सर के ऊपर से निकल जाती हैं पर हाँ आपके समझाने का andaj itna nirala है की देर सवेर दिमाग में आ ही जाती हैं .

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  2. सर आपने तो समस्त भारत का चरित्र चित्रण ही कर डाला.......बहुत सुन्दर लगी आप की पोस्ट....बधाई....

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  3. भारत के इतने भागों और वहां के यथार्थ को समेटते हुए आपने जो एकदम ही अलग ढंग से रचा...जहाँ आपकी लेखन क्षमता यह प्रमाणित कर रही है,वहीँ आपकी चिंतन का विस्तार भी दिखा रही है...

    बहुत बहुत भायी यह उत्कृष्ट रचना...

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  4. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ..बहुत सरलता बडी़ गूढ़ बात रख दी.उत्कृष्ट रचना..आभार

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  5. दोहों के माध्यम से हिंदुस्तान के दर्शन कराती सुंदर प्रस्तुति

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  6. भारत के सभी राज्यों की वास्तविक स्थिति का यथार्थ चित्रण किया है आपने शब्द चित्रों के माध्यम से .आभार

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  7. भारत के विभिन्न प्रदेशों का चरित्र चित्रण . पढ़कर बहुत अच्छा लगा.

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  8. bhaut hi khubsurati se samast bharat ki ek sath prstut kiya aapne... bhaut hi accha pryas...

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  9. bahut hi accha aur majedaar sir.

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  10. आप सभी का स्वागत है ||

    आज की चर्चा मंच की व्यस्तता
    के कारण समय लगा ||

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  11. इस रचना के माध्यम से मिली आपकी पहचान।
    रग-रग में आपकी है दौड़ रहा, पूरा हिन्दुस्तान॥

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  12. मेरे ब्लाग पर आने के लिए धन्यवाद.
    खूबसूरत और अनूठी अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  13. भारत भारती वैभव....
    जिंदगी अपनी विपन्न...


    धन्य हो गया सरकार मैं तो .

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  14. प्रिय रविकर जी एक नयी और अनोखी कला शैली की शुरुआत प्यारी-
    सारे प्रदेश को तितर बितर करने वाला रंग -दर्द -मर्म और साथ में आप का परिचय भी -घर और ससुराल -
    आप के रंग अलग अलग मायने दर्शाते मूक रह भी बहुत कुछ कहते -
    दिन दिन मेहँदी आप की चढ़ा रहे ये रंग
    केरल से लद्दाख तक सब रहें रविकर के संग
    भ्रमर ५

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  15. beautiful thoughtful poem

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  16. कलात्मक वर्णन , प्रतिविम्बित करता समय के प्रहार को , जिसे ढ़ोना होगा खुशियों की मानिंद ,.... शुभ कामनाएं /

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  17. ज़बरदस्त दोहे.

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  18. आपके दोहे घर परिवार से ले कर पूरे भारत का नक्शा दिखा रहे हैं ..सुन्दर प्रस्तुति

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  19. “रवि कराये दोहों में, भारत भर की सैर,
    वाह वाह करते रहे, कदम कदम में पैर”.
    सादर

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  20. एक नये अन्दा्ज़ की बेहद उम्दा रचना।

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  21. जबरदस्त व्यंग ! गूढ़ और सटीक अभिव्यक्ति !

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  22. ज़बरदस्त दोहे.

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