लम्बे-लम्बे इन्तजार से, खुब तड़पाते हो |
गोदी में सिर रखकर प्रियतम गीत सुनाते हो |
देर से आने की झूठी, सब - गाथा गाते हो,
पलकें पोल खोलती फिर भी बात बनाते हो |
शब्दों के तुम बड़े खिलाड़ी भाव जमाते हो
अवसर पाकर अंगुली पकड़ी "पहुंचा" पाते हो |
प्यासी धरती पर रिमझिम सावन बरसाते हो
मन-झुरमुट में हौले से प्रिय फूल खिलाते हो |
एक-घरी रुक के खुद को जो व्यस्त बताते हो,
अनमयस्क से इधर उधर कर समय बिताते हो |
रह-रह कर के विरह-अग्नि बरबस भड़काते हो,
रह-रह करके पल-पल तन-मन आग लगाते हो |
फिर आने का वादा करके वापस जाते हो,
वापस जाकर के फिर से क्यूँ प्यार दिखाते हो ??
* रुक-रुक कर / साथ रहकर
बहुत ही अच्छी रचना
ReplyDeleteएक अनुभूत सत्य से रु -बा -रु करवाती आशिक और माशूक की बात ,तदानुभूत हुए .http://veerubhai1947.blogspot.com/ कृपया यहाँ भी छेड़ करें .
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा सोमवार १/०८/११ को हिंदी ब्लॉगर वीकली {२} के मंच पर की गई है /आप आयें और अपने विचारों से हमें अवगत कराएँ / हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। कल सोमवार को
ReplyDeleteब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।
आज रांची प्रवास के मध्य में हूँ |
ReplyDeleteएक मित्र के घर से आपका आभार कर रहा हूँ ||
आज 01- 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
सुन्दर रचना.....
ReplyDelete्बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteवाह बेहतरीन !!!!
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteसादर...
वाह बेहतरीन !!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..बादलों से बहुत आत्मीयता से शिकायत की गयी है ..
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
पलकें पोल खोलती फिर भी बात बनाते हो
ReplyDeleteक्या बात है, बहुत खूब गुप्ता जी|
बातों बातों में सब कह दिया ,कृपया यहाँ भी पधारें .http://veerubhai1947.blogspot.com/
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति| बधाई स्वीकार करें|
ReplyDeletesunder rachna...
ReplyDeleteसरल अभिव्यक्ति .....
ReplyDeleteरचना अपने उद्देश्य में कामयाब है !
हार्दिक शुभकामनायें आपको !