कहो तो न जियूं || ओ प्रेम-दीवानी --
*बागर पर बैठी रानी ! * नदी के किनारे बेहद ऊंची जगह
बादल आये
बरसे
प्रेम-जल बाढ़ा--
कई बन्ध टूटे
पर अब भी
जीवन नैया
मिलन को तरसे
तुम क्यूँ रूठे ??
बचपन की एक बात याद आ गई- एक बार दूकान पर जलेबी की सजी थाली देख कर अम्मा से बोला कि अम्मा मैं जलेबी नहीं खाऊँगा जबकि अम्मा ने पूछा भी नहीं था कि जलेबी खाओंगे अम्मा समझ गईं और कहीं नहीं बेटा तुम जलेबी ज़ुरूर खाओं...और मुझे जलेबी मिल गई
बहुत उदास सी बात कही ..
ReplyDeleteअरसे बाद --
ReplyDeleteउन गुजरी गलियों से गुजरा ||
किसकी हिम्मत है, आपको रोकने की?
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..मन को छू गयी.
ReplyDeleteबैचेनी...
ReplyDeleteदिल को छूने वाली मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
very nice
ReplyDeleteजीने के लिए किसी और की नहीं बल्कि अपनी इच्छा का होना ज्यादा ज़रूरी है. आपकी प्रस्तुति कुछ समझ से बाहर है.
ReplyDeleteबचपन की एक बात याद आ गई-
ReplyDeleteएक बार दूकान पर जलेबी की सजी थाली देख कर अम्मा से बोला कि अम्मा मैं जलेबी नहीं खाऊँगा जबकि अम्मा ने पूछा भी नहीं था कि जलेबी खाओंगे अम्मा समझ गईं और कहीं नहीं बेटा तुम जलेबी ज़ुरूर खाओं...और मुझे जलेबी मिल गई
बहुत सुन्दर...
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