दूजे की फुल्ली लखैं, आपन ढेंढर नाय |
ऐसे मानुष ढेर हैं, चलिए इन्हें बराय ||
चलिए इन्हें बराय, दूर से हाथ जोड़िये |
अगर पास आ जाय, हाथ मुँह दाँत तोड़िये |
फिर 'रविकर' दे ठोक, ठोक के भेजो गुल्ली,
करिहैं ना बकवाद, देख दूजे की फुल्ली ||
फुल्ली = बहुत ही छोटी गलती
ढेंढर = ढेर सारा दोष
ऐसे मानुष ढेर हैं, चलिए इन्हें बराय ||
चलिए इन्हें बराय, दूर से हाथ जोड़िये |
अगर पास आ जाय, हाथ मुँह दाँत तोड़िये |
फिर 'रविकर' दे ठोक, ठोक के भेजो गुल्ली,
करिहैं ना बकवाद, देख दूजे की फुल्ली ||
फुल्ली = बहुत ही छोटी गलती
ढेंढर = ढेर सारा दोष
करिहैं न बकवाद, देख औरन की फुल्ली
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर....और सार्थक....
अच्छी रचना है!
ReplyDelete--
मित्रता दिवस पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
bhut acchi rachna...
ReplyDeleteEkdam sahi baat . ravikar jee bahut bahut badhai sundar rachana ke liye
ReplyDeletebahut sundar rachna, aabhar.
ReplyDeleteसच्ची बात... सुन्दर और सार्थक रचना...धन्यवाद रविकर जी..
ReplyDeleteवाह रविकर जी
ReplyDeleteक्या कहने, बहुत सुंदर रचना
प्रस्तुति का अदाज तो और भी निराला है।
Nice post .
ReplyDeleteवाह निराला अंदाज़ बरकरार है दिनेश जी ...
ReplyDeleteवाह, बढिया कुंडली । अच्छा हुआ जो आपने ढेंढर और फुल्ली का मतलब समझा दिया ।
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति .
ReplyDeleteस्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
बहुत सार्थक प्रस्तुति
ReplyDelete, स्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
आप को बहुत बहुत धन्यवाद की आपने मेरे ब्लॉग पे आने के लिये अपना किमती समय निकला
ReplyDeleteऔर अपने विचारो से मुझे अवगत करवाया मैं आशा करता हु की आगे भी आपका योगदान मिलता रहेगा
बस आप से १ ही शिकायत है की मैं अपनी हर पोस्ट आप तक पहुचना चाहता हु पर अभी तक आप ने मेरे ब्लॉग का अनुसरण या मैं कहू की मेरे ब्लॉग के नियमित सदस्य नहीं है जो में आप से आशा करता हु की आप मेरी इस मन की समस्या का निवारण करेगे
आपका ब्लॉग साथी
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
वाह ... बेहतरीन ।
ReplyDeleteक्या बात!!!!!.......बढ़िया
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