07 August, 2011

आपन ढेंढर नाय-

दूजे की फुल्ली लखैं, आपन ढेंढर नाय |
ऐसे मानुष ढेर हैं, चलिए इन्हें बराय || 

चलिए इन्हें बराय, दूर से हाथ जोड़िये |
अगर पास आ जाय, हाथ मुँह दाँत तोड़िये |

फिर 'रविकर' दे ठोक, ठोक के भेजो गुल्ली,
करिहैं ना बकवाद,  देख दूजे की फुल्ली ||

फुल्ली = बहुत ही छोटी गलती 
ढेंढर = ढेर सारा दोष

15 comments:

  1. करिहैं न बकवाद, देख औरन की फुल्ली

    बहुत ही सुन्दर....और सार्थक....

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  2. अच्छी रचना है!
    --
    मित्रता दिवस पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  3. Ekdam sahi baat . ravikar jee bahut bahut badhai sundar rachana ke liye

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  4. bahut sundar rachna, aabhar.

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  5. सच्ची बात... सुन्दर और सार्थक रचना...धन्यवाद रविकर जी..

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  6. वाह रविकर जी
    क्या कहने, बहुत सुंदर रचना
    प्रस्तुति का अदाज तो और भी निराला है।

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  7. वाह निराला अंदाज़ बरकरार है दिनेश जी ...

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  8. वाह, बढिया कुंडली । अच्छा हुआ जो आपने ढेंढर और फुल्ली का मतलब समझा दिया ।

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  9. सुन्दर भावाभिव्यक्ति .
    स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  10. बहुत सार्थक प्रस्तुति
    , स्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

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  11. आप को बहुत बहुत धन्यवाद की आपने मेरे ब्लॉग पे आने के लिये अपना किमती समय निकला
    और अपने विचारो से मुझे अवगत करवाया मैं आशा करता हु की आगे भी आपका योगदान मिलता रहेगा
    बस आप से १ ही शिकायत है की मैं अपनी हर पोस्ट आप तक पहुचना चाहता हु पर अभी तक आप ने मेरे ब्लॉग का अनुसरण या मैं कहू की मेरे ब्लॉग के नियमित सदस्य नहीं है जो में आप से आशा करता हु की आप मेरी इस मन की समस्या का निवारण करेगे
    आपका ब्लॉग साथी
    दिनेश पारीक
    http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/

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  12. वाह ... बेहतरीन ।

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  13. क्या बात!!!!!.......बढ़िया

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