ओमपुरी से हो खफा, मांसाहारी दोस्त |
कल से खाना छोड़ते, वे मुर्दों का ग़ोश्त |4|
ताज़ा ग़ोश्त
लो क सं घ र्ष ! पर मेरी टिप्पणी
कोतवाल ने रोक ली, इक गरीब की लाश |
कोचवान से मांगता, खाने को कुछ मांस |
खाने को कुछ मांस, राम-लखन का वास्ता |
अखिलेश्वर भी नहीं, कराता उन्हें नाश्ता |
पर माया तू जान , न गली पुलिस की दाल |
अन्नाजन को देख, दुम दाब भगा कुत्त्वाल ||
कोतवाल ने रोक ली, इक गरीब की लाश |
ReplyDeleteकोचवान से मांगता, खाने को कुछ मांस |
ओह पीड़ा का सुंदर शब्दांकन
aa re ye keya ho gaya hai
ReplyDeleteWednesday, August 31, 2011
ReplyDeleteनाट्य रूपांतरण किया है किरण बेदी ने .;
मंगलवार, ३० अगस्त २०११
नाट्य रूपांतरण किया है किरण बेदी ने .;
किरण बेदी जी ने जो कुछ कहा है वह महज़ नाट्य -रूपांतरण हैं उस जनभावना का जो भारतीय राजनीति के प्रति जन मन में मौजूद है .दृश्य की प्रस्तुति उनकी है .संवाद श्री ॐ पुरी जी के हैं ।
किरण ने घूंघट की ओढनी की ओट से जो कुछ कहा है वह सर्वथा भारतीय नारी की मर्यादा के अनुरूप है ,उपालम्भ शैली में है ।
पुरी सम्पूर्ण पुरुष है ,अपनी प्रकृति स्वभाव के अनुरूप कहा है जो कुछ कहा है .कहा किरण जी ने भी वही है .बस पुरुष और नारी के स्वभाव का सहज अंतर है यह ।
अनुपम खैर जैसी अजीमतर शख्शियत ने पुरी के वक्तव्य पर मोहर लगाते हुए कहा है -आम भारतीय घर में यही सब बोला जाता है इनसंसदीय - तोतों के बारे में जो विशेषाधिकार हनन की बात कर रहें हैं ।
बुलाये संसद और राज्य सभा की विशेषाधिकार समिति टीम अन्ना को ,ॐ जी को ,दस लाख लोग आजायेंगे उनके पीछे पीछे .इनकेसाथ अपने तोता पंडित वीरुभाई और वागीश जी भी होंगें .बेहतर हो डिब्बे का दूध पीने वाले जन भावनाओं के साथ खिलवाड़ न करें .आदर दे जन मन को ,जन -आक्रोश को इसी में भली है ।
DO YOU KNOW :Infants need daily exercise
एक ब्रितानी अध्ययन ने इंगित किया है नौनिहालों के लिए भी कसरत करना ज़रूरी है भले वह अभी "मैयां मैयां ठुमक ठुमक चलना न सीख पायें हों .कोईछूट नहीं दी जा सकती इन नौनिहालों को ,शिशुओं को कसरत से .
माँ बाप को यह सुनिश्चित करना चाहिए उनका १-५ साला नन्द लाल और राधायें कम से कम दिन भर में तीन घंटा ज़रूर सक्रिय रहें .
दो साल से नीचे की उम्र के शिशुओं को कदापि टेलिविज़न (बुद्धू बक्से )या फिर कंप्यूटर के सामने न बिठाएं .
संसद भरो अभियान
ReplyDeleteटाइमस ऑफ़ इंडिया पर प्रकाशित एक टिपण्णी ने मुझे इतना प्रभावित किया की मैने सोचा की क्यों न में इसे अपने ब्लॉग पर डाल कर इसका प्रसार करूँ? किरण बेदी और ओम पुरीजी ने कुछ भी गलत नहीं कहा है। हमें दिखाना है की राष्ट्र जग गया है, ईसके लिये हम सब आइये नेताओ को अन्पड, ग्वार, नालायक , दोमुहे, चोर देशद्रोही, गद्दार कहती हुई एक चिठ्ठी लोकसभा स्पीकर को भेजे(इक पोस्टकार्ड ). देखते हैं देश के करोडो लाखो लोगो को सांसद कैसे बुलाते है अपना पक्ष रखने के लिये। यादी इससे और कुछ नहीं हुआ तो भी बिना विसिटर पास के लोक तंत्र के मंदिर संसद को देखने और किरण बेदी के साथ खड़े होने का मौका मिलेगा। और संसद ने सजा भी दे दी तो भी एक उत्तम उद्देश्य के लिये ये जेल भरो होंगा।
में एक बार फिर ये स्पष्ट कर दू की यह विचार मैने एक टिप्पणी से उठाये हैं पर में इससे १००% सहमत हूँ। कृपया इस विचार को अपने अपने ब्लॉग पर ड़ाल कर प्रसारित करे। आइये राष्ट्र निर्माण में हम अपनी भूमिका निभाये।
जय हिंद
प्रस्तुतकर्ता Nilam-the-chimp पर 8:09 PM
लेबल: अन्ना, आन्दोलन, किरण-बेदी
मंगलवार, ३० अगस्त २०११
ReplyDeleteनाट्य रूपांतरण किया है किरण बेदी ने .;
किरण बेदी जी ने जो कुछ कहा है वह महज़ नाट्य -रूपांतरण हैं उस जनभावना का जो भारतीय राजनीति के प्रति जन मन में मौजूद है .दृश्य की प्रस्तुति उनकी है .संवाद श्री ॐ पुरी जी के हैं ।
किरण ने घूंघट की ओढनी की ओट से जो कुछ कहा है वह सर्वथा भारतीय नारी की मर्यादा के अनुरूप है ,उपालम्भ शैली में है ।
पुरी सम्पूर्ण पुरुष है ,अपनी प्रकृति स्वभाव के अनुरूप कहा है जो कुछ कहा है .कहा किरण जी ने भी वही है .बस पुरुष और नारी के स्वभाव का सहज अंतर है यह ।
अनुपम खैर जैसी अजीमतर शख्शियत ने पुरी के वक्तव्य पर मोहर लगाते हुए कहा है -आम भारतीय घर में यही सब बोला जाता है इनसंसदीय - तोतों के बारे में जो विशेषाधिकार हनन की बात कर रहें हैं ।
बुलाये संसद और राज्य सभा की विशेषाधिकार समिति टीम अन्ना को ,ॐ जी को ,दस लाख लोग आजायेंगे उनके पीछे पीछे .इनकेसाथ अपने तोता पंडित वीरुभाई और वागीश जी भी होंगें .बेहतर हो डिब्बे का दूध पीने वाले जन भावनाओं के साथ खिलवाड़ न करें .आदर दे जन मन को ,जन -आक्रोश को इसी में भली है .
रविकर जी चारों और ही इन दिनों अन्ना रविकर जी का ही प्रकाश है ,क्या कहने हैं आपके हमारी बात काव्यात्मक अंदाज़ में कह दी -
ReplyDeleteउत्तर प्रदेश पुलिस लाश गाडी से इस तरह वसूली करती है |
ओमपुरी से हो खफा, मांसाहारी दोस्त |
ओमपुरी से हो खफा, मांसाहारी दोस्त |
कल से खाना छोड़ते, वे मुर्दों का ग़ोश्त |4|
अंतर्मन को उद्देलित करती पंक्तियाँ.....
ReplyDeleteगहरी गहरी बात भी ,हँसी-खेल में व्यक्त.
ReplyDeleteरविकर जी की लेखनी है कोमल या सख्त.
है कोमल या सख्त,इसे रविकर ही जाने
हम तो सदा कलम का इनकी लोहा माने.
सजग हमेशा होते , हैं जो सच्चे प्रहरी
हँस कर रचनाओं में कहते बातें गहरी.
कोतवाल ने रोक ली, इक गरीब की लाश |
ReplyDeleteउफ़ रविकर..... क्या कह गए.
आपका काव्य हर जगह अपनी छटा बिखेरता है।
ReplyDeleteपर माया तू जान , न गली पुलिस की दाल |
ReplyDeleteअन्नाजन को देख, दुम दाब भगा कुत्त्वाल ||
निस्संदेह ऎसी पोस्ट सिर्फ आप ही लिख सकते है
आपका आभार
श्री गणेश पर्व की आपको बधाई एवं शुभकामनायें!!
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