आखेट मानव का सदा, करता रहा है राक्षस,
तो माँस-मदिरा से उदर, भरता रहा है राक्षस,
उस गाँव का तब एक बन्दा जान देता था वहाँ--
किन्तु गुच्छों में निवाला, खा रहा है राक्षस |
हाथ करते हैं खड़े जमुना में इच्छा शक्ति धो--
सुरसा सरीखा मुँह दुगुना, बा रहा है राक्षस |
मौत ही सस्ती हुई, हर जीन्स महँगा बिक रहा -
हर एक बन्दे को इधर अब भा रहा है राक्षस |
ताज की हलचल से आया था कलेजा मुँह तलक-
तो जेल में भी मस्त गाने गा रहा है राक्षस ||
मौत ही सस्ती हुई, हर जीन्स महँगा बिक रहा -
ReplyDeleteहर एक बन्दे को इधर अब भा रहा है राक्षस |
महंगाई का राक्षस सचमुच मौत सस्ती किये दे रहा है । एक अलग सी किंतू झकझोर देने वाली कविता ।
ताज की हलचल से आया था कलेजा मुँह तलक-
ReplyDeleteअब जेल में भी मस्त गाने गा रहा है राक्षस ||
सार्थक वातावरण प्रधान काव्यात्मक प्रस्तुति .राजनीतिक दुरावस्था का सटीक चित्रण .
Tuesday, September 20, 2011
महारोग मोटापा तेरे रूप अनेक .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
ReplyDeleteवाह ये चित्रमय लाजवाब रचना ... हर शेर कटाक्ष है ...
ReplyDeleteएकदम निशाने पर ही तीर मारा है .....लाजबाब शेर
ReplyDeleteएक एक सब्द सटीक सार्थक सत्य....
ReplyDeleteबहुत बहुत बहुत ही सुन्दर,प्रभावशाली रचना...
अच्छे चित्र अच्छी रचना |
ReplyDeleteआशा