बारी अभी आई नहीं, खेत पानी में पटे ||
लेट-गाडी तीन घंटे, किन्तु क्यू में हम डटे ||
( लग गए लाइन में --जाने वालों की )
असफल हुआ दो मर्तवा, इंजीनियरिंग इंट्रेंस में,बाप का अरमान बेटा, पाठ 'कोटा' में रटे ||
( कोटा बेस्ट कोचिंग सेंटर )
बन गया इन्जीनियर, पुत्र फ़ारेन जा बसा,
पैरेंट्स की असमर्थता, वक्त काटे न कटे |
(इकलौता बेटा )
(अधिक पढाया तो दूर हो जायेगा )
( लग गए लाइन में --जाने वालों की )
असफल हुआ दो मर्तवा, इंजीनियरिंग इंट्रेंस में,
( कोटा बेस्ट कोचिंग सेंटर )
बन गया इन्जीनियर, पुत्र फ़ारेन जा बसा,
पैरेंट्स की असमर्थता, वक्त काटे न कटे |
(इकलौता बेटा )
आज के नव दौर में, चल पड़ी फिर सोच ऐसी
बस जरूरत भर पढ़ा, तन्हा कलेजा क्यूँ फटे |(अधिक पढाया तो दूर हो जायेगा )
चाचा-बुआ-दादा पडोसी, और भी रिश्ते भुला ,
ज्ञान अर्जित कर लिया तो लिस्ट क्यूँ कैसे घटे ?
( लिस्ट में कुछ रिश्ते और जुड़ गए )
रिजल्ट हो बढ़िया हमेशा, चाहते थे आप जो -
हर समय बोला किये कि सब रिलेटिव हैं लटे ||
( सभी रिश्तों को बुरा बताया गया )
बचपना पूरा गया, रिश्ते भुलाने में गुजर --( सभी रिश्तों को बुरा बताया गया )
भूलने का पा मजा, तो व्यर्थ में अब क्यूँ सटे ||
(जिम्मेदारियां क्यूँ उठायें )
बाप - बूढ़े मातु - अक्षम, चल - बसे वृद्धाश्रमा,
गोकि घर आश्रम बने, रविकर लगे क्यूँ अट-पटे ??
(जैसी करनी वैसी भरनी )
यही होता है ...सटीक प्रस्तुति
ReplyDeleteकैरियर के नाम पर कर्तव्य से विमुख परम्परा पर करारा प्रहार.
ReplyDeleteनया ज़माना है साहेब.
ReplyDeleteगहरी चोट ....
ReplyDeleteमार्मिक
ReplyDeleteBahut sundar aur marmik chitran
ReplyDeletebadhai sweekaar kare.
रविकर जी बेहद मार्मिक हमारे समय की आम व्यथा को रूपायित करती रचना .
ReplyDeleteरविकर जी ,बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने ,
ReplyDelete.........धन्यवाद् .....
भारतीय परम्परा के अवमूल्यन जैसे ज़रूरी विषय पर आपका लेखन सार्थक है......आभार.
ReplyDeleteबहुत खूब रविकर भाई।
ReplyDeleteभटके हुए हिन्दुस्तान की तस्वीर है इन पंक्तियों में।
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