16 September, 2011

बन गया इन्जीनियर, पुत्र फ़ारेन जा बसा,

मां, मातृभाषा और मातृभूमि posted by मनोज कुमार विचार से प्रभावित रचना || 

बारी  अभी   आई   नहीं,  खेत  पानी  में  पटे ||
लेट-गाडी  तीन घंटे, किन्तु क्यू  में हम  डटे  ||
( लग गए लाइन में --जाने वालों की )





असफल हुआ दो मर्तवा, इंजीनियरिंग इंट्रेंस  में,
बाप का अरमान बेटा, पाठ  'कोटा'  में   रटे ||
( कोटा बेस्ट कोचिंग सेंटर )

http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/f/fc/Tarom.b737-700.yr-bgg.arp.jpg 

बन  गया  इन्जीनियर, पुत्र  फ़ारेन जा बसा,
पैरेंट्स की असमर्थता,  वक्त  काटे न  कटे |
(इकलौता बेटा )



आज के नव दौर में, चल पड़ी फिर सोच ऐसी 
बस जरूरत भर पढ़ा, तन्हा कलेजा क्यूँ फटे |
(अधिक पढाया तो दूर हो जायेगा )

 

 

 

 चाचा-बुआ-दादा पडोसी, और भी रिश्ते भुला , 

ज्ञान अर्जित कर लिया तो लिस्ट क्यूँ कैसे घटे ?

( लिस्ट में कुछ रिश्ते और जुड़ गए )

Sweating Over an Exam 
रिजल्ट  हो  बढ़िया  हमेशा,  चाहते  थे  आप  जो -
हर  समय  बोला   किये  कि  सब  रिलेटिव   हैं  लटे || 
( सभी रिश्तों को बुरा बताया गया )

बचपना   पूरा   गया,  रिश्ते   भुलाने   में गुजर --
भूलने  का  पा  मजा, तो  व्यर्थ  में  अब  क्यूँ  सटे ||
(जिम्मेदारियां क्यूँ उठायें )


Preview

बाप - बूढ़े  मातु - अक्षम, चल - बसे  वृद्धाश्रमा,
गोकि घर आश्रम बने, रविकर लगे क्यूँ अट-पटे ?? 
(जैसी करनी वैसी भरनी )






11 comments:

  1. यही होता है ...सटीक प्रस्तुति

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  2. कैरियर के नाम पर कर्तव्य से विमुख परम्परा पर करारा प्रहार.

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  3. नया ज़माना है साहेब.

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  4. रविकर जी बेहद मार्मिक हमारे समय की आम व्यथा को रूपायित करती रचना .

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  5. रविकर जी ,बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने ,
    .........धन्यवाद् .....

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  6. भारतीय परम्परा के अवमूल्यन जैसे ज़रूरी विषय पर आपका लेखन सार्थक है......आभार.

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  7. बहुत खूब रविकर भाई।

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  8. भटके हुए हिन्दुस्तान की तस्वीर है इन पंक्तियों में।

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