21 September, 2011

गरीब मिटाते हैं --

 दोहा 
नई गरीबी रेख से, कर गरीब-उत्थान ||
दो सरदारों से बना, भारत देश महान ||

 घनाक्षरी

बत्तीसी दिखलाय के, पच्चीस कमवाय के
आयोग आगे आय के, खूब हलफाते हैं |

दवा दारु नेचर से, कपडे  फटीचर  से
मुफ्तखोर टीचर से,  बच्चा पढवाते  हैं |

सेहत शिक्षा मिल गै , कपडा लत्ता सिल गै
तनिक छत हिल गै,  काहे घबराते हैं ?

गरीबी हटाओ बोल, इंदिरा भी गईं डोल,
 सरकारी
झाल-झोल, गरीब मिटाते हैं ||

 कुण्डली
जंगल में चलकर रहो, सूखी  टहनी  बीन |
चावल दो मुट्ठी भरो, कर लो झट नमकीन |

कर लो झट नमकीन, माड़ से भरो कटोरा |
माड़ - भात परसाय, खिलाऊ  छोरी-छोरा |

डब्लू एच ओ जाय, बता दो सब कुछ मंगल |

चार साल के बाद, यही तो होइहैं नक्सल ||
 दोहा  

हुई गरीबी भुखमरी, बत्तिस में बदनाम |

 बने अमीरी आज फ़क्त, एक रुपैया दाम |


16 comments:





  1. आदरणीय रविकर जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    क्या बात है …
    दोहे भी मस्त ! घनाक्षरी कमाल ! कुंडली गज़ब !
    क्या इरादा है ? :)

    मुफ़्तखोर टीचर से बच्चा पढ़वाते हैं …
    वाह !
    चार साल के बाद, यही तो होइहैं नक्सल
    आह !

    आपके ब्लॉग पर आ'कर अनन्द मिलता है … :)
    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  2. बहुत सटीक बात कही... पढकर बहुत अनन्द मिला..

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  3. सटीक..सुंदर...आनंद दायक।

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  4. यथार्थ को कहती हर रचना ...

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  5. आज 23- 09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


    ...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
    ____________________________________

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  6. गजब की पोस्ट!

    सादर

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  7. सार्थक अभिव्यक्ति।

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  8. बहुत बढ़िया प्रस्तुति | बधाई |
    मेरे ब्लॉग में भी आयें-

    **मेरी कविता**

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  9. बहुत सही और सटीक दोहे ...

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  10. bahut kamal ke dohe, ghanaakshari aur kundli. maza aaya padhkar. bahut sateek aur saarthak, badhai sweekaaren.

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  11. बहुत खूब ............पढ़ा कर मज़ा आ गया

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  12. हुई गरीबी भुखमरी, बत्तिस में बदनाम
    बहुत खूब

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  13. गरीबों की दुर्दशा पर सटीक टिप्पणी है आपकी रचना ....

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  14. नई गरीबी रेख से, कर गरीब-उत्थान ||
    दो सरदारों से बना, भारत देश महान ||

    कविता के सारे प्रयोग एक ही प्रस्तुति में और ऊपर से आज के हालात पर सुंदर कटाक्ष. बधाई.

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