पति-अनुनय को कह धता, कुपित होय तत्काल |
बरछी-बोल कटार-गम, दरक जाय मन-ढाल ||
पत्नी पग-पग पर परे, पति पर न पतियाय |
श्रीमन का मन मन्मथा, श्रीमति मति मटियाय ||
हार गले की फांस है, किया विरह-आहार |
हारहूर से तेज है, हार हूर अभिसार ||
चमकी चपला-चंचला , छींटा छेड़ छपाक |
हार गले की फांस है, किया विरह-आहार |
हारहूर से तेज है, हार हूर अभिसार ||
हारहूर=मद्य
आहार-विरह=रोटी के लालेचमकी चपला-चंचला , छींटा छेड़ छपाक |
तेज तड़ित तन तोड़ती, तददिन तमक तड़ाक ||
मुमुक्षता मुँहबाय के, माया मोह मिटाय |
मुमुक्षता मुँहबाय के, माया मोह मिटाय |
मृत्यु-लोक से जाय के, महबूबा चिल्लाय ||
मुमुक्षता=मुक्ति की अभिलाषा का भाव
sundar rachna
ReplyDeleteअच्छी व्यंग्य प्रस्तुति.....
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुती ! सटीक व्यंग्य!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
सटीक व्यंग्य ..
ReplyDeleteवाह! :))
ReplyDeleteHA HA HA ...BAHUT KHOOB
ReplyDeleteअनुप्रास अलंकार की अनुपम छटा दर्शाते उत्तम दोहे प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत बधाई गुप्ता जी
ReplyDeleteवाह .. आप अलंकारों से सजी पोस्ट लगाते अहिं हर बार और पढ़ने मों मज़ा आ जाता है ... आज तो हास्य व्यंग को भी झंकृत कर दिया ...
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
वाह वाह वाह वाह वाह
ReplyDeleteHi,
ReplyDeletenie poem.
I saw that you are with ISM.
I am ISM passout 2k10 batch (CSE B Tech).
From when aare you associted with ISM.
Regards,
Chakresh
mmravikar ji pranaam
ReplyDeletesach aapke rasmay dohe padh , manan kar kiskaa man na mohe . yah tippadee naheen tippad hai , ek chhote nar jeevan kaa param dhan , ran hai patnee ,sachchee vahee jo pati se tani rahe patnee .badhaayee
मुमुक्षता मुँहबाय के, माया मोह मिटाय |
ReplyDeleteमृत्यु-लोक से जाय के, महबूबा चिल्लाय ||
बहुत ही अनुपम पोस्ट अलंकारों से सजी हुई /बधाई आपको /मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद /आशा है आगे भी आपका आशीर्वाद मेरी रचनाओं को मिलता रहेगा /आभार /
सर्वप्रथम नवरात्रि पर्व पर माँ आदि शक्ति नव-दुर्गा से सबकी खुशहाली की प्रार्थना करते हुए इस पावन पर्व की बहुत बहुत बधाई व हार्दिक शुभकामनायें। सुंदर शब्द अलंकृत रचना दियो जीवन का सत्य उघार। पर ममता करुणा सहनशीलता का भी होवे ये भण्डार॥
ReplyDeleteआपकी पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (११) के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/आप इसी तरह मेहनत और लगन से हिंदी की सेवा करते रहें यही कामना है /आपका
ReplyDeleteब्लोगर्स मीट वीकली
के मंच पर स्वागत है /जरुर पधारें /
--क्या सुंदर भई-- विश्रंखलित वाक्य हैं -क्या कोई स्पष्ट करेगा-----?
ReplyDeleteपति की अनुनय को धता,--- का क्या अर्थ है....
सहे चोट मन-ढाल ||----का क्या अर्थ है...
पत्नी पग-पग पर परे, ----का क्या अर्थ है ...
काहे विचारे रविकर को गलत व अशुद्ध काव्य की राह पर धकेल रहे हैं ......साहित्य की भी हानि है....
ReplyDeleteजी !
ReplyDeleteइस सोच के साथ --
पति की अनुनय को धता = पति के निवेदन पर ध्यान नहीं दिया गया और पत्नी ने इनकार कर दिया |
कुपित होय तत्काल = और तुरंत नाराज हो गई |
बरछी - बोल कटार - गम = कुछ चुभते हुए वाक्य
बोले गए , मन दुखी हो गया |
सहे चोट मन - ढाल = इस झटके को मन सहता रहा ||
आलोचना का हमेशा स्वागत है |
हिंदी की विधिवत पढ़ाई १० वीं तक ही हुई है, इसलिए विद्वानों की छत्र-छाया हेतु प्रयासरत रहता हूँ |
आपकी सेवा में सम्यक सुझाव हेतु ये पंक्तियाँ १० दिन पूर्व प्रेषित की थीं परन्तु शायद आपकी कृपादृष्टि उन पर न पड़ सकी ||
कृपया परिवर्तन सुझाएँ-- आभारी रहूँगा ||
पत्नी पग-पग पर परे = पत्नी का दूर हटने से तात्पर्य
ReplyDeleteपल-पल पति पतियाय = पति द्वारा अपना विशवास दिलाने का प्रयास
भाई वाह
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अलंकृत कृति है
शानदार
कल 20/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
gajab hai , man mohak rachanaa
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब ।
ReplyDeletebahut hi accha
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