लंका-नगरी बैठ दशानन त्रेता में मुस्काया था |
बीस भुजाओं से सिर सारे मन्द मन्द सहलाया था ||
सीता ने तृण-मर्यादा का जब वो जाल बिछाया था-
बाँये से पहले वाला सिर बहुत-बहुत झुँझलाया था |
ब्रह्मा ने बाँधा था ऐसा, कुछ भी ना कर पाया था |
ब्रह्मा ने बाँधा था ऐसा, कुछ भी ना कर पाया था |
असंतुष्ट हो वचन सहे थे |
दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||
दहन देख दारुण दुःख लंका दूजा मुख गुर्राया था |
क्षत-विक्षत अक्षय को देखा गला बहुत भर्राया था |
अंगद के कदमों के नीचे तीजा खुब अकुलाया था |
पैरों ने जब भक्त-विभीषण पर आघात लगाया था |
बाएं से चौथे सिर ने नम-आँखों, दर्द छुपाया था-
भाई ने तो पैर गहे थे |
दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||
सहस्त्रबाहु से था लज्जित दायाँ वाला पहला सिर |
दूजे ने रौशनी गंवाई एक आँख बाली से घिर |
तीजा तो बचपन से निकला महादुष्ट पक्का शातिर |
मन्दोदरी से चौथा चाहे बातचीत हरदम आखिर |
पर सबके अरमान दहे थे |
दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||
शीश नवम था चापलूस बस दसवें की महिमा गाये |
दो पैरों के, बीस हाथ के, कर्म - कुकर्म सदा भाये |
मारा रावण राम-चन्द्र ने, पर फिर से वापस आये |
नया दशानन पैरों की दस जोड़ी पर सरपट धाये |
दसों दिशा में बंटे शीश सब, जगह-जगह रावण छाये -
सब सिर के अरमान लहे थे |
सब सिर के अरमान लहे थे |
दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||
नमन है दिनेश जी ...
ReplyDeleteबहुत ही धमाकेदार प्रस्तुति....झंडा गाड़ दिया रविकर भाई !
ReplyDeleteसही कहा आपने शत प्रतिशत सहमत .....
ReplyDeletekyaa baat hai , badhaayee
ReplyDeleteraavan ke saron kee peedaa ke parisheelan srijan
gazab kee kalpnaa hai ,aapkee lekhnee se yathrth
men bah rahee hai kavitaa ,raamraaj kaa dansh
sah rahee hai kavitaa .
रोचक!
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत.... सुगढ़ रचना....
ReplyDeleteविजयादशमी की सादर बधाईयाँ....
विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व, सभी के जीवन में संपूर्णता लाये, यही प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर से।
ReplyDeleteनवीन सी. चतुर्वेदी
विजयादषमी की हार्दिकष्षुभकामनाए रावण के दस सिर आज भी हमारे समाज की बुराईयों के प्रतीक है ।
ReplyDeleteआपके गहन विचार ,तर्क सर्वकालिक है,सत्य भी है असहमति ही असफलता को आमंत्रित करती है,कदाचित, सहमति की परिभाषा समझ में न aye , शुक्रिया जी /
ReplyDeleteगहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त प्रस्तुति!
ReplyDeleteविजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।
kuch "alag"
ReplyDeleteaabhar :)
happy dashhara :)
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteHats Off!!
ReplyDeletekalyug me vyapt har tarah ki kuritiyon per sundar katakch!
आपकी लेखनी को नमन.
ReplyDeleteरावण के दसों सिरों की गाथा और उनकी असहमती की कथा खूब जमाई आपने । बधाई हो रविकर जी ।
ReplyDeleteरावण के दसों सिरों की गाथा और उनकी असहमती की कथा खूब जमाई आपने । बधाई हो रविकर जी ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति .प्रतीकात्मक चित्र .
ReplyDeletehappy dussehra
ReplyDeletekuch alg...kuch hat kar hai ...aabhar
ReplyDelete