12 October, 2011

जीते धोबी से नहीं, पीट गधे को देत |

 जीते धोबी से नहीं,  पीट  गधे  को  देत |
पीट-पीट के कर दिए, काले कपडे श्वेत |

काले  कपडे  श्वेत,  पीठ  पर  ढोता  भाई |
 काला  तन -मन  ढेर, श्वेत  है केवल टाई |
 कह रविकर कविराय, भले दिन इसके बीते |
  होवें फेल दलील, केस न एको जीते ||

5 comments:

  1. आज के परिदृश्य में यह रचना बहु अर्थी है।

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  2. हमेशा की तरह उम्दा रचना...सामयिक विषयों पर तुरंता-टीप !

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  3. चित्र और रचना दोनों बेजोड़...

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  4. बेहद गहन अर्थो को समेटे है रचना।

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  5. बेजोड़ लिखा है..बधाई.

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