20 October, 2011

द्वन्द्व-दोहा : राजा जनक को समर्पित

आना-जाना एकसर, कर इसका एहसास |
साथ दूसरे का नहीं, केवल प्रभु-विश्वास ||
File:Janaka welcomes Rama.jpg
रहे  अकेला  तो  खले,  गले  गले  तक  देह |
बुद्धि-कर्ण-मुख-नासिका, बन्दर-बन्द-सनेह ||

द्वन्द्व पूरते द्वन्द्व हो, द्वादसबानी दंग |
जीवन गण-संघर्ष से, बन्दा  होता तंग ||
द्वादसबानी= सूर्य सा चमकदार / प्रखर / खरा/ चोखा/ सच्चा/ पक्का
द्वन्द्व = दो / युगल / संघर्ष  

एकाकी योगी रहे, भोगी चाहे गेह |
शान्ति पाए वही जो, देहातीत "विदेह" || 
एकाकी-पन कष्टकर, द्वन्द्व निकाले आह |
अनुभूती एकत्व की, गण में हो निर्वाह ||

8 comments:

  1. अच्छा लिखा है..बधाई.

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  2. सुन्दर और सटीक प्रस्तुति ..

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  3. अर्थ पढने के बाद ...सार समझने में आसानी रही...

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  4. यह तो अद्भुत प्रस्तुति है...
    सादर बधाई...

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  5. भाई रविकर जी बहुत सुंदर दोहे बधाई और दीपावली की शुभकामनायें

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  6. नए नए शब्दों से परिचय करा रहे हैं आप

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  7. एकाकी योगी रहे, भोगी चाहे गेह |
    शान्ति पाए वही जो, देहातीत "विदेह".
    सुन्दर प्रस्तुति.

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