आना-जाना एकसर, कर इसका एहसास |
साथ दूसरे का नहीं, केवल प्रभु-विश्वास ||
रहे अकेला तो खले, गले गले तक देह |
बुद्धि-कर्ण-मुख-नासिका, बन्दर-बन्द-सनेह ||
द्वन्द्व पूरते द्वन्द्व हो, द्वादसबानी दंग |
जीवन गण-संघर्ष से, बन्दा होता तंग ||
द्वादसबानी= सूर्य सा चमकदार / प्रखर / खरा/ चोखा/ सच्चा/ पक्का
द्वन्द्व = दो / युगल / संघर्ष
एकाकी योगी रहे, भोगी चाहे गेह |
शान्ति पाए वही जो, देहातीत "विदेह" ||
एकाकी योगी रहे, भोगी चाहे गेह |
शान्ति पाए वही जो, देहातीत "विदेह" ||
एकाकी-पन कष्टकर, द्वन्द्व निकाले आह |
अनुभूती एकत्व की, गण में हो निर्वाह ||
अच्छा लिखा है..बधाई.
ReplyDeleteसुन्दर और सटीक प्रस्तुति ..
ReplyDeleteअर्थ पढने के बाद ...सार समझने में आसानी रही...
ReplyDeleteयह तो अद्भुत प्रस्तुति है...
ReplyDeleteसादर बधाई...
bahut sundar doha, badhai.
ReplyDeleteभाई रविकर जी बहुत सुंदर दोहे बधाई और दीपावली की शुभकामनायें
ReplyDeleteनए नए शब्दों से परिचय करा रहे हैं आप
ReplyDeleteएकाकी योगी रहे, भोगी चाहे गेह |
ReplyDeleteशान्ति पाए वही जो, देहातीत "विदेह".
सुन्दर प्रस्तुति.