अस-लीले गुर कुर्सियाँ, कर-नाटक असलील ।
खादी ओढ़े भेड़िया, बड़ा करेक्टर ढील ।
बड़ा करेक्टर ढील, "नील" हॉउस को करते ।
नंगे सभी हमाम, मगर मेला में डरते ।
चारित्रिक यह पतन, करे सबको शर्मिंदा ।
छलनी करे करेज, करो खुब इसकी निंदा ।।
पालिटिक्स में कपि-पिला , बड़ा पिलपिला मल्ल ।
छिद्र सूप का देख के, हो चलनी सम गल्ल ।
हो चलनी सम गल्ल, कुटिल सिब-बल जो पाए ।
होवे कभी न हल्ल, चाल फिर नई चुराए ।
नारायण जस प्यार, भूलता बीबी-बिटवा।
करे इसे स्वीकार, मगर दूजों से शिकवा ।।
बढ़िया तानाकशी...
ReplyDelete:-)
बहुत सुन्दर कटाक्ष उम्दा रचना के साथ ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!