09 March, 2012
चूहे रहे मुटाय, आलसी बने निगोड़े-
डालें दिन में दस दफा, बिना भूख के अन्न ।
पेटू भोजन-भट्ट का, धर्म-कर्म संपन्न ।
धर्म-कर्म संपन्न, बैठ के रोटी तोड़े ।
चूहे रहे मुटाय, आलसी बने निगोड़े ।
चूहा भी खुशहाल, चार का दाना खाले ।
वहाँ भूख से मौत, यहाँ लत डेरा डाले ।।
3 comments:
संतोष त्रिवेदी
9 March 2012 at 20:37
मोटे चूहे,बिल्ली मोटी
अपनी तो पहचान है छोटी !!
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mridula pradhan
10 March 2012 at 01:07
very good......
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S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib')
10 March 2012 at 07:41
वाह! सुन्दर कुण्डलिया...
सादर बधाई.
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मोटे चूहे,बिल्ली मोटी
ReplyDeleteअपनी तो पहचान है छोटी !!
very good......
ReplyDeleteवाह! सुन्दर कुण्डलिया...
ReplyDeleteसादर बधाई.