09 March, 2012

चूहे रहे मुटाय, आलसी बने निगोड़े-

डालें दिन में दस दफा, बिना भूख के अन्न ।
पेटू भोजन-भट्ट का, धर्म-कर्म संपन्न ।

धर्म-कर्म संपन्न, बैठ के रोटी तोड़े ।
चूहे रहे मुटाय, आलसी बने निगोड़े ।

 चूहा भी खुशहाल, चार का दाना खाले ।
वहाँ भूख से मौत, यहाँ लत डेरा डाले ।।    
  

3 comments:

  1. मोटे चूहे,बिल्ली मोटी
    अपनी तो पहचान है छोटी !!

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  2. वाह! सुन्दर कुण्डलिया...
    सादर बधाई.

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