27 March, 2012

रविकर पहला प्यार, हमेशा हृदय पुकारे -

कासे कहूँ?

सारे दुःख की जड़ यही, रखें याद संजोय |
समय घाव न भर सका, आँखे रहें भिगोय ।

आँखे रहें भिगोय, नहीं मांगें छुटकारा  ।
सीमा में चुपचाप, मौन ही नाम पुकारा ।

रविकर पहला प्यार, हमेशा हृदय पुकारे ।
दिख जाये इक बार, मिटें दुःख मेरे सारे ।।



चीनी ड्रैगन लीलता, त्रिविष्टप संसार ।
दैव-शक्ति को पड़ेगा, पाना इससे पार ।

पाना इससे पार, मरे न गन से ड्रैगन ।
देखेगा गरनाल, तभी यह काँपे गन-गन ।

भरा पूर्ण घट-पाप,  ढूँढ़ जग चाल महीनी ।
होय तभी यह  साफ़, बड़ी कडुवी यह चीनी ।।

12 comments:

  1. होय तभी यह साफ़, बड़ी कडुवी यह चीनी ।।कृपया ढूंढ /ढूढ़ जो भी शुद्ध रूप है कर ले बजाय दूंढ़ के .दूंढ़ कोई जन -भाषा का शब्द तो नहीं है .
    प्रस्तुति बहु -आयामीय है .बढ़िया है -

    रविकर पहला प्यार, हमेशा हृदय पुकारे ।
    दिख जाये इक बार, मिटें दुःख मेरे सारे ।।

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  2. समय घाव न भर सका, आँखे रहें भिगोय ।
    समय निर्मम जो है...
    सुन्दर प्रस्तुति! सादर!

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  3. पहले-पहले प्यार की, रहती मीठी याद।
    शादी के पश्चात तो, जीवन है वरबाद।।

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    1. ब्लॉग जगत पर बह चली , गेय-काव्य की धार |
      कौशल अरुण हबीब जी, गुरुवर है आभार ||

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  4. टिप्पणियों से पोस्ट को, सजा रहे हैं आप।
    मापडण्ड के साथ में, रहे रास्ता नाप।।

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  5. जो गाने के योग्य हो, काव्य उसी का नाम।
    रबड़छंद का काव्य में, बोलो क्या है काम।।

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    1. रबड़-छंद में मिल रहा, रबड़ी जैसा स्वाद |
      पैंतिस चालीस टिप्पणी, है मिलती खुब दाद |

      करता चौबीस टिप्पणी, पाता हूँ मैं चार |
      सिखा सके विद्वान जो, दूँ शत शत आभार ||

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  6. आते हैं सत्संग में, गिने-चुने ही लोग।
    जिस्मनुमायस का सदा, मन को भाता रोग।।

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    1. न्योता भेजो मंच का, समझें मूर्ख प्रपंच |
      खुद को ग्यानी कह रहे, छोड़ गए दो मंच ||

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  7. रचना, टिप्पणी और प्रत्युत्तर सभी बहुत बढ़िया, बधाई स्वीकारें.

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  8. हम तो जीते प्रेम में,पहला हो कि पंचम
    वर्तमान ही है अहम,कैसे रखें संयम!

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    1. सही है भाई |

      वर्तमान को भोगिये, बीती ताहि विसार |
      मिलना-जुलना कुछ नहीं, व्यर्थ बढ़ाये रार ||

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