21 March, 2012

रोने से कैसे भरे, तन के गहरे जख्म-


टट्टू बनी शिकायती, जनता खाए जान ।
धोखे की टट्टी करे, समुचित सकल निदान ।

छोटी छोटी बात पर, मर्मरीक मिमियात ।
भ्रष्ट-घुटाला कालिखें, बड़ी भूलता जात ।
 
*साल साल न सालता, याददाश्त कमजोर ।  
कुण्डा का घड़ियाल अब, कारा रहा अगोर ।
*एक प्रकार की मछली / घाव / गढ़ 

सैकिल से रगड़ी गई, ताकी हाथी दाँत ।
गन्ने सा चूसी गई, फिर से वही जमात ।

झापड़ पहले खा चुकी, कमलनाल का मोह ।
दलदल से बचती फिरी, फँसी अँधेरी खोह ।

रोने से कैसे भरे, तन के गहरे जख्म ।
दवा दुआ कर ले भले, जख्म होयंगे ख़त्म ।

गिरेबान में झांक कर, कर सुधार शुरुवात ।
खुद से कर खुद-गर्ज तू , सुधरेंगे हालात ।। 

4 comments:

  1. रोने से कैसे भरे, तन के गहरे जख्म ।
    दवा दुआ कर ले भले, जख्म होयंगे ख़त्म ।

    बहुत बढ़िया...
    सभी लाजवाब...

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  2. वाह! बहुत खूब....
    सादर.

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  3. सैकिल से रगड़ी गई, ताकी हाथी दाँत ।
    गन्ने सा चूसी गई, फिर से वही जमात ।
    वाह बेहतरीन .प्रासंगिक .

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  4. ...अब तो कुछ करके दिखाना होगा,खाली रगड़ाई से काम नहीं चलने वाला !

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