21 March, 2012

काटे पादप रोज, हरेरी अपनी भाये--

भाये ए सी की हवा, डेंगू मच्छर दोस्त ।
फल दल पादप काटते, काटे मछली ग़ोश्त ।

काटे मछली ग़ोश्त, बने टावर के जंगल ।
टूंगे जंकी टोस्ट, रोज जंगल में मंगल ।

खाना पीना मौज, मगन मनुवा भरमाये ।
काटे पादप रोज, हरेरी ज्यादा भाये ।।

4 comments:

  1. पर्यावरण सचेत दृष्टि है आपकी .एक ज्वलंत मुद्दे की तरफ ध्यान खींचा है आपने इनका भी कुछ करो -
    ram ram bhai

    बुधवार, 21 मार्च 2012
    गेस्ट आइटम : छंदोबद्ध रचना :दिल्ली के दंगल में अब तो कुश्ती अंतिम होनी है .
    गेस्ट आइटम : छंदोबद्ध रचना :दिल्ली के दंगल में अब तो कुश्ती अंतिम होनी है .
    -डॉ .नन्द लाल मेहता 'वागीश 'डी.लिट ',पूर्व वरिष्ठ अध्येता ,संस्कृति मंत्रालय ,भारत सरकार .,शब्दालोक ,१२१८,सेकटर ४,अर्बन इस्टेट ,गुडगाँव (हरियाणा )१२२-००१
    आओ सारे मिलकर देखें ,किस्मत किसकी सोहनी है ,
    दिल्ली के दंगल में अब तो ,कुश्ती अंतिम होनी है .
    . राजनीति की इस चौसर पर ,जैसे गोटी ,वोट ज़रूरी
    ऐसे काले धन की खातिर ,भ्रष्ट व्यवस्था ,बहुत ज़रूरी .
    साथ- साथ दोनों चलतें हैं ,नहीं कहीं कोई तकरार ,
    गठ -बंधन की आड़ में यारो ,कैसी अज़ब गज़ब सरकार ,
    मंत्री मुख में पड़ीं लगामें ,शक्लें सब मनमोहनी हैं ,
    दिल्ली के दंगल में अब तो ,कुश्ती अंतिम होनी है .
    मंद बुद्धि के पाले में ,फिर तर्क जुटाते कई उकील ,
    चम्पू कई हैं जुगत भिड़ाते ,गढ़ते चमकदार तस्वीर
    कहतें हैं अब उम्र यही है ,इंडिया की बदले ,तकदीर
    निकल गई गर हाथ से बाज़ी ,पड़ेगी दिल्ली खोनी है
    उन्नीस की गिनती है ,उन्नीस ,इक्कीस कभी न होनी है ,
    दिल्ली के दंगल में अब तो कुश्ती ,अंतिम होनी है .
    लाख भोपाली जादू टोने ,अफवाहें छल ,छदम घिनौने
    काम नहीं कर पायेंगे ये ,अश्रु जल से चरण भिगोने
    अपनी रोनी सूरत से तुम बदसूरत ,चैनल को करते
    दोहराते हो झूठ बराबर ,शर्मसार भारत को करते ,
    अब तो आईना सच का देखो ,सर पर बैठी होनी है ,
    दिल्ली के दंगल में अब तो कुश्ती अंतिम होनी है .
    प्रस्तुति एवं सहभावी :वीरेन्द्र शर्मा .(वीरुभई )
    लेबल :मध्यावधि चुनाव ,चुनाव ,काग भगोड़ा और मंद मति राजकुमार .

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  2. जंगल की क्या गल करें
    करनी मंगल हमको
    ऐश करें,देखी जाएगी
    सबकी पड़ी है किसको!

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  3. सार्थक रचना |

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  4. ||वो काटेंगे पेड़, उगाने पत्थर टीले
    बने भेडिये भेड़, लगा कर रहते एसी||


    सुन्दर प्रस्तुति. सादर बधाई.

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