वाह...क्या करारा तंज है.....
मेरी सौ की ग्रोथ, बुराई मैं क्यूँ झेलूं ।निन्यान्नावे ये लोग, गिराते सकल घरेलू ।।अमीरों की सोच । जोरदार व्यंग ।
तीखा कटाक्ष करते दोहे...
सही कटाक्ष ..
बहुत तीखा कटाक्ष....
वाह! सुन्दर कुण्डलिया कहा रविकर जी...
आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)बहुत सार्थक पोस्ट....दोहों से आनंद आ गया. बधाई स्वीकारें. नीरज
sundar kundaliyan bahut bahut aabhar..क्या यही लोकतंत्र है?
बहुत अच्छे !!
कैसे मानें जीडीपी,हुआ फीसदी सातबढ़ती जाती महंगाई,बात-बात बेबात
वाह...
ReplyDeleteक्या करारा तंज है.....
मेरी सौ की ग्रोथ, बुराई मैं क्यूँ झेलूं ।
ReplyDeleteनिन्यान्नावे ये लोग, गिराते सकल घरेलू ।।
अमीरों की सोच । जोरदार व्यंग ।
तीखा कटाक्ष करते दोहे...
ReplyDeleteसही कटाक्ष ..
ReplyDeleteबहुत तीखा कटाक्ष....
ReplyDeleteवाह! सुन्दर कुण्डलिया कहा रविकर जी...
ReplyDeleteआज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
ReplyDeleteबहुत सार्थक पोस्ट....दोहों से आनंद आ गया. बधाई स्वीकारें.
नीरज
sundar kundaliyan bahut bahut aabhar..
ReplyDeleteक्या यही लोकतंत्र है?
बहुत अच्छे !!
ReplyDeleteकैसे मानें जीडीपी,हुआ फीसदी सात
ReplyDeleteबढ़ती जाती महंगाई,बात-बात बेबात