कन्या
हिमनद भैया मौज में, सोता चादर तान |
सरिता बहना झेलती, पग पग पर व्यवधान |
काटे कंटक पथ कई, करे पार चट्टान ।
गिरे पड़े आगे बढे, राह नहीं आसान ।
सुन्दर सरिता सँवरती, रहे सरोवर घूर ।
चौड़ा हो हिमनद पड़ा, सरिता बहे जरूर ।
बहना का बहना रुका, बना बाँध व्यवधान ।
बिता काल आपात का, बढ़ी बचा सम्मान ।
इंद्र-देवता ने किया, निर्मल मन विस्तार ।
तीक्ष्ण धार-धी से सबल, समझी धी संसार ।
तन मन आनंदित हुआ, किन्तु गई उकताए |
धार कुंद होती गई, सागर में मिल जाय |
भूल गई पहचान वो, खोयी सरस स्वभाव।
तड़पन बढ़ती ही गई, नमक नमक हर घाव ।
छूट जनक का घर बही, झेली क्रूर निगाह ।
स्वाहा परहित हो गई, रही अधूरी चाह ।।
हिमनद भैया मौज में, सोता चादर तान |
सरिता बहना झेलती, पग पग पर व्यवधान |
काटे कंटक पथ कई, करे पार चट्टान ।
गिरे पड़े आगे बढे, राह नहीं आसान ।
सुन्दर सरिता सँवरती, रहे सरोवर घूर ।
चौड़ा हो हिमनद पड़ा, सरिता बहे जरूर ।
बहना का बहना रुका, बना बाँध व्यवधान ।
बिता काल आपात का, बढ़ी बचा सम्मान ।
दुर्गंधी कलुषित हृदय, नरदे करते भेंट ।
आपस में फुस-फुस करें, करना मटियामेट ।
इंद्र-देवता ने किया, निर्मल मन विस्तार ।
तीक्ष्ण धार-धी से सबल, समझी धी संसार ।
तन मन आनंदित हुआ, किन्तु गई उकताए |
धार कुंद होती गई, सागर में मिल जाय |
भूल गई पहचान वो, खोयी सरस स्वभाव।
तड़पन बढ़ती ही गई, नमक नमक हर घाव ।
छूट जनक का घर बही, झेली क्रूर निगाह ।
स्वाहा परहित हो गई, रही अधूरी चाह ।।
दुर्गंधी कलुषित हृदय, नरदे करते भेंट ।
आपस में फुस-फुस करें, करना मटियामेट ।
vicharniy post.aabhar..mere jile ke neta ko C.M.bana do and 498-a
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 26-03-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
बहुत प्रभावी सृजन...
ReplyDeleteसादर।
अच्छे-बुरे सभी को करती खुद में एकाकार
ReplyDeleteजीत ही जीत होगी नही मिलेगी कभी हार।
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeletesundar rachna...aabhar
ReplyDeleteinteresting.
ReplyDeleteआपके दोहे बहुत उत्कृष्ट हैं आदरणीय.. बिलकुल नदी की तरह प्रवाहमयी एवं स्त्री की तरह कोमल .. सुन्दर दोहे .. आभार ,,
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