मुझे नहीं पता यह क्या हो गया मुझको --
क्षमा सहित यह तुरंती ।
डाकिया डाकुओं से, बुरा हो गया ।
लूट लेता है तन्हाई, आकर यहाँ ।
चिट्ठियाँ क्या पढूं , हाल मालुम हमें
या खुदा मैं रहूँ आज जाकर कहाँ ।।
मैं नकारा नहीं था कभी भी प्रभु
खुब कमाया खिलाया-पिलाया सदा ।
आज मशगूल हैं मद पिए मस्त वे
देव किस्मत में अपने, लिखा क्या बदा ।।
केश काला नहीं, तन करारा नहीं
दिल में बैठे रहे, क्यूँ निकाला नहीं ।
हर्ट की सर्जरी पास-बाई किया
मूंग दलती रहो, कुछ बवाला नहीं ।
वसीयत तुम्हारे लिए कर दिया
चार कमरों की बोतल तुम्हारी हुई ।
दफ़्न करना जरा, साथ में इक कलश
मस्त हो सो सके, देह हारी हुई ।
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ!
लाज़वाब है यह तुरंती /तुरता ग़ज़ल .
ReplyDeleteबेहतरीन.....
ReplyDeleteतुरंती पर फुरसतिया.......
ReplyDeleteचिट्ठियों का अब जमाना है कहाँ
और अपना भी ठिकाना है कहाँ
मेल, एसेमेस के चालू दौर में
डाकिये का आना-जाना है कहाँ.
नाकारा समझना -फितरत उसकी
आज तलक मैं ही-जरुरत उसकी
जो था वो हूँ वही कल भी रहूंगा
अब तबीयत उसकी,किस्मत उसकी.
हाय-बॉय किया, 'बाई' पास आ गई
रफ्ता- रफ्ता निकट बाई चांस आ गई
'बाई पास' कराना हमें पड़ गया
काले केशों पे भी अब उजास आ गई.
अंडर - ग्राउंड पाइप - लाइन बिछवा देंगे
मयखाना कर गये वसीयत , तोहफा देंगे
मिस्ड कॉल कर देना ,जब हो पार्टी-शार्टी
जितनी चाहो, पाइप से हम भिजवा देंगे.
थ्री जी से बचना जरा, दिख जायेगा रंग |
Deleteआँखों की मस्ती कहीं, करे तपस्या भंग ||
उनकी कृपा-प्रताप है, ढोते अब तक बोझ |
माने मन से देवता, चलें रास्ते सोझ ||
अगर हकीकत को करे, निर्मल बुद्धि क़ुबूल |
जीवन यात्रा हो सफल, सीधा सरल उसूल ||
कम्बल में ही घी पिए, लेकिन कभी-कभार |
दीवाली में देर है, होली होती पार ||
थ्री जी से बचना जरा, दिख जायेगा रंग |
Deleteआँखों की मस्ती कहीं, करे तपस्या भंग ||
उनकी कृपा-प्रताप है, ढोते अब तक बोझ |
माने मन से देवता, चलें रास्ते सोझ ||
अगर हकीकत को करे, निर्मल बुद्धि क़ुबूल |
जीवन यात्रा हो सफल, सीधा सरल उसूल ||
कम्बल में ही घी पिए, लेकिन कभी-कभार |
दीवाली में देर है, होली होती पार ||