17 March, 2012

कहाँ कटे मन गाँठ, विकल-मन रहता ऐंठा-

राधा-रमण जी शुक्रिया, बीरू जी आभार । 
गाँठ कटाई पीठ की, चौबीस घंटे पार ।

चौबीस घंटे पार, पुरानी बीस साल की ।
अनदेखी की बहुत, आज तक इस बवाल की ।

तन की गाँठ कटाय, दवा खाकर हूँ बैठा ।
कहाँ कटे मन गाँठ, विकल-मन रहता ऐंठा ।।

13 comments:

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    1. aap sheeghra swasth hon, yahee shubhakaamana hai.

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  2. जल्‍द ठीक हों ..
    शुभकामनाएं !!

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  3. आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 19-03-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  4. चलि‍ए जी जल्‍दी जल्‍दी स्‍वस्‍थ हों आप

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  5. तन की गाँठ कटाय, दवा खाकर हूँ बैठा ।
    कहाँ कटे मन गाँठ, विकल-मन रहता ऐंठा ।।
    मन के हारे हार है मन के जीते जीत ,मन जीते जग जीत.

    मन से आवे काया में भैया, जी हर रोग

    मन को मांजो रहो निरोग .

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  6. शीघ्र स्वस्थ हो .छंदों की बन्दों को ,बन्दों की छंदों को, अभी बहुत आवश्यकता है ..... सुन्दर रचना ,बधाईयाँ जी /

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  7. चलिए किसी भी गाँठ से तो मुक्ति मिली..शुभकामनाये..

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  8. तन की गांठ तो डॉक्टर काट देगा मन की तो खुद ही काटनी पडेगी ।

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  9. बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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  10. क्या बात है बहुत खूब |

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  11. हम सब के शरीर में कई गांठें होती हैं जिन पर बिरले ही ध्यान जाता है। शरीर में किसी भी प्रकार की गांठ मन की गांठ का ही नतीज़ा होती है।

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