02 April, 2012

मर्यादित व्यवहार, ज्येष्ठ से हरदम इच्छित -

फागुन और श्रावणी


फागुन से मन-श्रावणी,  अस्त व्यस्त संत्रस्त
भूली भटकी घूमती,  मदन बाण से ग्रस्त । 

मदन बाण से ग्रस्त, मिलन की प्यास बढाये ।
जड़ चेतन बौराय, विरह देहीं सुलगाये ।

तीन मास संताप, सहूँ मै कैसे निर्गुन ?
डालो मेघ फुहार, बड़ा तरसाए फागुन ।।
 

आश्विन और ज्येष्ठ

आश्विन की शीतल झलक, ज्येष्ठ मास को भाय।
नैना तपते रक्त से, पर आश्विन  इठलाय ।

पर आश्विन इठलाय, भाव बिन समझे कुत्सित।
मर्यादित व्यवहार, ज्येष्ठ से हरदम इच्छित ।

मेघ देख कर खिन्न, तड़पती तड़ित तपस्विन ।
भीग ज्येष्ठ हो शांत , महकती जाती आश्विन ।।

5 comments:

  1. बहुत उम्दा!!

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  2. ...पूरे बारहमासे की प्रतीक्षा है !

    सुन्दर आकलन !

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  3. तीन मास संताप, सहूँ मै कैसे निर्गुन ?
    डालो मेघ फुहार, बड़ा तरसाए फागुन ।।
    काव्य सौन्दर्य देखते ही बन पड़ा है इस प्रस्तुति में .इसे कहतें हैं सात्विक विरह की आंच को ,शातल करे फुहार श्रावणी ...

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  4. बहुत ही बढि़या प्रस्‍तुति।

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