07 April, 2012

यहाँ तो करनी ही पड़ेगी टिप्पणी-

मन विकसित न हो सका,  तन का हुआ विकास ।
बीस साल से ढो रहा, ममता  का विश्वास । 


ममता  का विश्वास, सबल अबला है माई ।
नब्बे के.जी. भार, उठा के बाहर लाई  ।

रविकर वन्दे मातु , उलाहन देता भगवन ।
तुझसे मातु महान, ठीक न करता तन मन ।।

3 comments:

  1. बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...

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  2. ऐसे ऐसे लोगों को देख कर लगता है कि भगवान कही नहीं है।

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