मन विकसित न हो सका, तन का हुआ विकास ।
बीस साल से ढो रहा, ममता का विश्वास ।
बीस साल से ढो रहा, ममता का विश्वास ।
ममता का विश्वास, सबल अबला है माई ।
नब्बे के.जी. भार, उठा के बाहर लाई ।
रविकर वन्दे मातु , उलाहन देता भगवन ।
तुझसे मातु महान, ठीक न करता तन मन ।।
बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...
ReplyDeleteओह।
ReplyDeleteऐसे ऐसे लोगों को देख कर लगता है कि भगवान कही नहीं है।
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