देखा हमने सुबह-सुबह ,रविकर जी का ड्रीम बिना बताये खा गये , पूरी आइस् क्रीम पूरी आइस् क्रीम , देख भाभी चिल्लाई सूझा नहीं उपाय , कुण्डलिया रच डाली शुष्की होवे दूर , पुकारे मन की "रेखा" धरती अम्बर रक्त , ख्वाब में हमने देखा.
भैया आइस-क्रीम की, सही पकड़ ली बात | भोजन -भट्टों को नहीं, एकै बात सुहात | एकै बात सुहात , होय ना टोका-टाकी | खात कठौता भात ,भूख बाकी की बाकी | महँगी आइसक्रीम, पुत्र हित रक्खी मैया | रविकर दो -दो जीम , डांट भी खाया भैया ||
तेरह महिने बाद पुत्र, आया माँ दरबार | पति-प्रति दृष्टी बदलती, रंच-मात्र न प्यार | रंच-मात्र न प्यार, बने पकवान अनोखे | बीता पूरा साल, निगम जी उनको देखे | फ्रिज में रक्खी माल, होय ना बाएं-दहिने | रविकर घोटे - राल, हाय रे तेरह महिने ||
वाह! जी वाह! बहुत ख़ूब
ReplyDeleteराधा सहे विछोह, पुकारे मन की मीरा ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा यह प्रयोग!
वाह ... बहुत खूब ...सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबैसाखी के पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं.
!!आपका स्वागत है!! !!यहाँ पर भी आयें!!
मित्रो...गौ माता की करूँ पुकार सुनिए और कम से कम 20 लोगो तक यह करूँ पुकार पहुँचाईए
गौ ह्त्या के चंद कारण और हमारे जीवन में भूमिक
तुम मुझे गाय दो, मैं तुम्हे भारत दूंगा
शुष्की और खुश्की धीरे-धीरे मिट रही है....बढ़िया आवाहन !
ReplyDeleteसर्वप्रथम बैशाखी की शुभकामनाएँ और जलियाँवाला बाग के शहीदों को नमन!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
सूचनार्थ!
वाह..............
ReplyDeleteवैशाखी की शुभकामनाएँ.
सादर.
राधा सहे विछोह, पुकारे मन की मीरा ।
ReplyDeleteबहुत अ
च्छा लगा यह शब्द प्रयोग!
क्षमा-याचना सहित एक हास्य -
ReplyDeleteदेखा हमने सुबह-सुबह ,रविकर जी का ड्रीम
बिना बताये खा गये , पूरी आइस् क्रीम
पूरी आइस् क्रीम , देख भाभी चिल्लाई
सूझा नहीं उपाय , कुण्डलिया रच डाली
शुष्की होवे दूर , पुकारे मन की "रेखा"
धरती अम्बर रक्त , ख्वाब में हमने देखा.
भैया आइस-क्रीम की, सही पकड़ ली बात |
Deleteभोजन -भट्टों को नहीं, एकै बात सुहात |
एकै बात सुहात , होय ना टोका-टाकी |
खात कठौता भात ,भूख बाकी की बाकी |
महँगी आइसक्रीम, पुत्र हित रक्खी मैया |
रविकर दो -दो जीम , डांट भी खाया भैया ||
तेरह महिने बाद पुत्र, आया माँ दरबार |
पति-प्रति दृष्टी बदलती, रंच-मात्र न प्यार |
रंच-मात्र न प्यार, बने पकवान अनोखे |
बीता पूरा साल, निगम जी उनको देखे |
फ्रिज में रक्खी माल, होय ना बाएं-दहिने |
रविकर घोटे - राल, हाय रे तेरह महिने ||
लाया मेरे लिए पुत्र, हाथ घडी का गिफ्ट |
Deleteउसी घडी से है हुआ, ध्यान मिसेज का शिफ्ट |
bahot achche.....
ReplyDeleteरविकर निगम संवाद कवित्तमय रहा .कविता दोनों के घर पानी भरती है .
ReplyDeleteबहुत खूब सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeletebahut khub...........
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