नई-गलती
गलत कभी भी ना करें, केवल दो इंसान ।
गलत कभी भी ना करें, केवल दो इंसान ।
महा-आलसी का-हिली, बेवकूफ नादान ।
बेवकूफ नादान, समझ न पाता गलती ।
रहता रविकर मस्त, गधे से दुनिया जलती ।
महा-आलसी काम, करे ना खुद से कोई ।
फिर गलती बदनाम, कहाँ से क्यूँकर होई ।।
23 June, 2011
को प्रकाशित
पुरानी गलती
गलती कर कर के बने, महा-अनुभवी लोग |
शान्ति-प्रिय होते सदा, जिनको प्रिय सम्मान |
करते छल हद तोड़ कर, माया जिनके प्राण |
माया जिनके प्राण, डुबाते सारे रिश्ते |
शांतिप्रिय जो लोग, आज के वही फ़रिश्ते |
पर रविकर यह शांति, नहीं श्मशान घाट की |
करता पूजा कर्म, जिन्दगी जिए ठाठ की ||
* * * * * *
गलती कर कर के बने, महा-अनुभवी लोग |
महाकवि बनता कोई, सहकर कष्ट वियोग |
सहकर कष्ट वियोग, गलतियाँ करते जाएँ |
किन्तु रहे यह ध्यान, उन्हें फिर न दोहराएँ |
कह रविकर सन्देश, यही है श्रेष्ठ-जनों का |
पंडित "शास्त्री" संत, आदि सब महामनों का ||
महाकवि बनता कोई, सहकर कष्ट वियोग |
सहकर कष्ट वियोग, गलतियाँ करते जाएँ |
किन्तु रहे यह ध्यान, उन्हें फिर न दोहराएँ |
कह रविकर सन्देश, यही है श्रेष्ठ-जनों का |
पंडित "शास्त्री" संत, आदि सब महामनों का ||
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बिकता है हर आदमी, भिन्न-भिन्न है दाम |
सच्चा मोल चुकाय वो, पड़ता जिसको काम ||
पड़ता जिसको काम , खरीदे देकर पैसा |
करता न सम्मान, करे बदनाम हमेशा |
पर रविकर यदि प्यार, ख़रीदे तुम्हें तोल के -
बिक जाना तुम यार, वहाँ पर बिना मोल के ||
गलती करे तो कोई अपराध नहीं,पर जानबूझकर जो करे वह तो अपराधी ही है !
ReplyDeleteबढ़िया विचार !
अपना क्या बताएं रविकर साहब। महाआलसी और काहिल खुद को समझना नहीं चाहता और लोग समझदार मानना नहीं चाहते!
ReplyDeleteबिकता है हर आदमी, भिन्न-भिन्न है दाम
ReplyDeletebeautiful poem
वाह वाह क्या बात है! बधाई
ReplyDeleteउल्फ़त का असर देखेंगे!