बाल्मीकि जी की लिखी, रामायण को बाँच ।
उन्नति का इतिहास यह, करो ग्रहण सब साँच ।।
कथा महाभारत सुनों, अवनति के दृष्टान्त ।
दुर्गुण त्यागे अक्लमंद, गीता से मन शांत ।।
काम वासना में फंसे, शांतनु का अन्याय ।
वंचित होती योग्यता, भीष्म हुवे असहाय ।।
सिंहासन से बन्ध रहे, भोगा सारा देश ।
नारी के अपहरण से, अम्बा भोगी क्लेस ।।
पराकाष्ठा पतन की, बने नियोगी व्यास ।
धृतराष्ट सह पान्डु को, मिली भूमिका ख़ास ।
पढ़ते वेद-पुराण पर, करें नहीं व्यवहार ।
सत्य-धर्म सम्बन्ध की, होती क्षति अपार ।।
दरकिनार कर योग्यता, आगे करते स्वार्थ ।
महा-युद्ध की घोषणा, आगे कृष्णा-पार्थ ।।
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति....
ReplyDeleteपढ़ते वेद-पुराण पर, करें नहीं व्यवहार ।
ReplyDeleteसत्य-धर्म सम्बन्ध की, होती क्षति अपार ।।
bahut badhiya............
सादर.
इन दिनों मचे घमासान में ये बातें काम की हैं।
ReplyDeleteज्ञान की बातें...बहुत बढ़िया|
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteअथ महाभारत कथा .....श्रम साध्य काम !
ReplyDeleteनीति और ज्ञान की गूढ़ बातें।
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