18 April, 2012

संरक्षित निर्भय रहे, संग पिता-पति पूत

आँख खोलकर छींकना, सीख चुका इंसान ।
रहस्य सूक्ष्मतम खोज ले, उत्साहित विज्ञान  ।

समय देश वातावरण, परिस्थिती निर्माण ।
जीर्ण-शीर्ण घट में भरे, सम्यकता नव-प्राण ।।

रहे कुशलता पूर्वक, छल ना पायें धूर्त ।
संरक्षित निर्भय रहे, संग पिता-पति पूत ।   

माता की कर वन्दना, कन्या का सम्मान।
 दुष्टों से रक्षा करो, कहता यही बिधान ।।

कई महायुग बीतते, आया नया वितान ।
 मनुस्मृति के कई छंद, रच फिर से विद्वान् ।|

संशोधन अधिकार है, माता करो सुधार
 संशोधित होता जहाँ, संविधान सौ बार ।।

6 comments:

  1. माता की कर वन्दना, कन्या का सम्मान।
    दुष्टों से रक्षा करो, कहता यही बिधान ।।

    वाह रविकर जी....

    बहुत सुंदर..

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपका श्रम सराहनीय है!

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  3. बहुत ही अच्छा। आपकी प्रतिभा का क़ायल कौन न होगा।

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  4. बहुत उत्तम प्रस्तुति, आभार.

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  5. ...नई तरह की सोच,नया विचार !

    शुभकामनाएँ !

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