आँख खोलकर छींकना, सीख चुका इंसान ।
रहस्य सूक्ष्मतम खोज ले, उत्साहित विज्ञान ।
समय देश वातावरण, परिस्थिती निर्माण ।
जीर्ण-शीर्ण घट में भरे, सम्यकता नव-प्राण ।।
रहे कुशलता पूर्वक, छल ना पायें धूर्त ।
संरक्षित निर्भय रहे, संग पिता-पति पूत ।
माता की कर वन्दना, कन्या का सम्मान।
दुष्टों से रक्षा करो, कहता यही बिधान ।।
कई महायुग बीतते, आया नया वितान ।
मनुस्मृति के कई छंद, रच फिर से विद्वान् ।|
मनुस्मृति के कई छंद, रच फिर से विद्वान् ।|
संशोधन अधिकार है, माता करो सुधार ।
संशोधित होता जहाँ, संविधान सौ बार ।।
bahut acchi abhiwayakti.....
ReplyDeleteमाता की कर वन्दना, कन्या का सम्मान।
ReplyDeleteदुष्टों से रक्षा करो, कहता यही बिधान ।।
वाह रविकर जी....
बहुत सुंदर..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपका श्रम सराहनीय है!
बहुत ही अच्छा। आपकी प्रतिभा का क़ायल कौन न होगा।
ReplyDeleteबहुत उत्तम प्रस्तुति, आभार.
ReplyDelete...नई तरह की सोच,नया विचार !
ReplyDeleteशुभकामनाएँ !