प्यास बुझी ना बावली, किया वारुणी पान ।
हुआ बावला इस कदर, भूल गया पहचान ।।
प्यास बुझी ना बावली, देखा जलधि अथाह ।
लेकिन अति लावण्यता, रविकर उठा कराह ।।
प्यास बुझी ना बावली, बैठ घास पर जाय ।
ओस रोस करके उडी, जाती हँसी उड़ाय।।
प्यास बुझी ना बावली, मंदिर में घुसपैठ ।
चरणामृत का पान कर, प्रभु चरणों में बैठ ।।
प्यास बुझी ना बावली, होता गया अधीर ।
धीरे धीरे हो गई, पर्वत जैसी पीर ।।
प्यास बुझी ना बावली, करता रहा उपाय।
वृद्धाश्रम को देख के, रविकर गया अघाय |
प्यास बुझी ना बावली, लेता बच्ची गोद |
भूख-प्यास सारी मिटी, घर में मंगल-मोद ||
हुआ बावला इस कदर, भूल गया पहचान ।।
प्यास बुझी ना बावली, देखा जलधि अथाह ।
लेकिन अति लावण्यता, रविकर उठा कराह ।।
प्यास बुझी ना बावली, बैठ घास पर जाय ।
ओस रोस करके उडी, जाती हँसी उड़ाय।।
प्यास बुझी ना बावली, मंदिर में घुसपैठ ।
चरणामृत का पान कर, प्रभु चरणों में बैठ ।।
प्यास बुझी ना बावली, होता गया अधीर ।
धीरे धीरे हो गई, पर्वत जैसी पीर ।।
प्यास बुझी ना बावली, करता रहा उपाय।
वृद्धाश्रम को देख के, रविकर गया अघाय |
प्यास बुझी ना बावली, लेता बच्ची गोद |
भूख-प्यास सारी मिटी, घर में मंगल-मोद ||
'प्यास बुझी ना बावली' की टेक लेकर कई बातों को ठिकाने लगा दिया है !
ReplyDeleteमस्त प्रयोग करते हो !
प्यास बुझी ना बावली, करले इक तदवीर ।
ReplyDeleteवृद्धाश्रम जा घूम ले, पी ले उनकी पीर ।
आपका संवेदनशील ह्रदय, समाज को बहुत कुछ दे जाएगा !
शुभकामनायें आपको !
प्यास बुझी ना बावली, प्रभु चरणों में बैठ ।
ReplyDeleteचरणामृत का पान कर, अपने कान उमेठ ।।
वाह...क्या बात कही है...अद्भुत बधाई स्वीकारें
नीरज
बहुत ही सुंदर प्रयोग ...
ReplyDeleteप्यास बुझी ना.....
ReplyDeleteएक सार गर्भित प्रयोग
शुभकामनाएँ
बहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
प्यास बुझी ना बावली,कर-कर के तदवीर
ReplyDeleteकिए जतन पर मिटी नहीं,पर्वत होती पीर
प्यास बुझी ना बावली, ले ले बच्ची गोद ।
ReplyDeleteअश्रु-कणों का पान कर, जीवन कर सामोद ।।
....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....