21 April, 2012

टिप्पणी-

"1300वाँ पुष्प" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

खिलें बगीचे में सदा, भान्ति भान्ति के रंग ।
पुष्प-पत्र-फल मंजरी, तितली भ्रमर पतंग ।

तितली भ्रमर पतंग, बागवाँ शास्त्री न्यारे ।
दुनिया होती दंग,  आय के उनके द्वारे ।

 
नित्य पौध नव रोप,  हाथ से हरदिन सींचे ।
कठिन परिश्रम होय, तभी तो खिलें बगीचे ।।


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बिन पुस्तक का घर लगे, बिन खिड़की का कक्ष -

2 comments:

  1. बिन पुस्तक का घर लगे, बिन खिड़की का कक्ष -
    खिलें बगीचे में सदा, भान्ति भान्ति के रंग ।
    पुष्प-पत्र-फल मंजरी, तितली भ्रमर पतंग ।
    एक ब्लोगिया पारितंत्र हैं शाष्त्री -रविकर जी ,जहां गीत प्रगीत ,कुण्डलिनी दोहावली अपने माहौल से संतुलन कायम रखती है .

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति...

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