"1300वाँ पुष्प" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
खिलें बगीचे में सदा, भान्ति भान्ति के रंग ।
पुष्प-पत्र-फल मंजरी, तितली भ्रमर पतंग ।
तितली भ्रमर पतंग, बागवाँ शास्त्री न्यारे ।
तितली भ्रमर पतंग, बागवाँ शास्त्री न्यारे ।
दुनिया होती दंग, आय के उनके द्वारे ।
नित्य पौध नव रोप, हाथ से हरदिन सींचे ।
कठिन परिश्रम होय, तभी तो खिलें बगीचे ।।
आज की अन्य टिप्पणियां
बिन पुस्तक का घर लगे, बिन खिड़की का कक्ष -
ReplyDeleteखिलें बगीचे में सदा, भान्ति भान्ति के रंग ।
पुष्प-पत्र-फल मंजरी, तितली भ्रमर पतंग ।
एक ब्लोगिया पारितंत्र हैं शाष्त्री -रविकर जी ,जहां गीत प्रगीत ,कुण्डलिनी दोहावली अपने माहौल से संतुलन कायम रखती है .
बहुत सुंदर प्रस्तुति...
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