जिम्मेदारी के लिए, हो जाओ तैयार,
बच्चों के प्रति है अगर, थोडा सा भी प्यार |
थोडा सा भी प्यार, बड़ा विश्वास जगाओ--
सबसे पहले स्वयं, कठिन संयम अपनाओ |
है जो बात जरुरी, उसकी करो तैयारी |
नैतिक शिक्षा हुई , आज की जिम्मेदारी ||
स्नेहमयी स्पर्श की, अपनी इक पहिचान,
बुरी-नियत संपर्क का, चलो दिलाते ध्यान |
चलो दिलाते ध्यान, बताना बहुत जरुरी,
दिखे भेड़ की खाल, बना के रक्खे दूरी |
करो परीक्षण स्वयं, बताओ सीधा रस्ता,
घर आये चुपचाप, उठा के अपना बस्ता ||
पहली कक्षा में सिखा, सेहत के सब राज,
और आठवीं में बता , सब अंगों के काज |
सब अंगों के काज, मगर विश्वास जरुरी,
धीरे - धीरे शांत, करो उत्सुकता पूरी |
खतरे - रोग - निदान, बताना एक - एक कर,
पशु-पिशाच की भीड़ , हमेशा देख-रेख कर ||
चंचल मन पर क्या कभी, चला किसी का जोर
हलकी सी बहती हवा, आग लगाए घोर |
आग लगाए घोर, बचाना चिंगारी से,
पढना लिखना खेल, सिखाओ हुशियारी से |
कह रविकर समझाए, अगर पढने में कच्चा,
रखिये ज्यादा ध्यान, बिगड़ जाये न बच्चा ||
बच्चों को भी हो पता, होवेगा कब व्याह,
रोजगार से लग चुका, तब भी भरता आह |
तब भी भरता आह, हुवा वो पैंतिस साला--
बढ़ जाते हैं चांस, करे न मुँह को काला |
सही समय पर व्याह, कराओ उसका भाई,
इधर-उधर हर-रोज करे न कहीं सगाई ||
रोजगार से लग चुका, तब भी भरता आह |
तब भी भरता आह, हुवा वो पैंतिस साला--
बढ़ जाते हैं चांस, करे न मुँह को काला |
सही समय पर व्याह, कराओ उसका भाई,
इधर-उधर हर-रोज करे न कहीं सगाई ||
सबसे पहले स्वयं, कठिन संयम अपनाओ |
ReplyDeleteहै जो बात जरुरी, उसकी करो तैयारी |
नैतिक शिक्षा हुई , आज की जिम्मेदारी ||
वाह !!
जरूरी है !
खतरे - रोग - निदान, बताना एक - एक कर,
ReplyDeleteपशु-पिशाच की भीड़ , हमेशा देख-रेख कर ||
चंचल मन पर क्या कभी, चला किसी का जोर
हलकी सी बहती हवा, आग लगाए घोर |
आग लगाए घोर, बचाना चिंगारी से,
पढना लिखना खेल, सिखाओ हुशियारी से |
प्रिय रविकर जी .होश दिलाती रचना बहुत जरुरी है आँखे खोले हुए बच्चों की परवरिश करना
नायाब रचना
भ्रमर ५
है जो बात जरुरी, उसकी करो तैयारी |
ReplyDeleteनैतिक शिक्षा हुई , आज की जिम्मेदारी ...
सच कहा है रवि जी ... आज की जिम्मेवारी तो यही है अगर अच्छा इंसान बनाना है तो ...
चंचल मन पर क्या कभी, चला किसी का जोर
ReplyDeleteहलकी सी बहती हवा, आग लगाए घोर |
आग लगाए घोर, बचाना चिंगारी से,
पढना लिखना खेल, सिखाओ हुशियारी से |
कह रविकर समझाए, अगर पढने में कच्चा,
रखिये ज्यादा ध्यान, बिगड़ जाये न बच्चा ||
बोध कविता प्रवाह .सरिता सा कलकल बहता जाए ,बच्चे को सब कुछ समझाए ,उंच नीच के भेद बताये ,....
किस पडाव पर क्या जरूरी है बताने वाली नैतिक शिक्षा की कुडलियां सटीक हैं ।
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