अनर्गल तुकबंदी
(१)
अफसर और विधायक पकडे, नक्सल अब ना कमता ।
केंद्र कबीना पल्ला झाडे , नहीं मामला जमता ।
निर्णय में अफसर ना झिझको ।
मेरी क्या ? तुम छोडो मुझको ।
माँ से अच्छी ममता माया, मैं जोगी ना रमता ।
(२)
चार दिनों से पटा रहा था, डेटिंग खातिर लड़का ।
रेस्टोरेंट गया सन्डे को, काफी रोटी तड़का ।
थे आँखों में आँखे डाले ।
प्रेम पियासे निगल निवाले ।
पर्स भूल आया था घर ही, मैनेजर खुब भड़का ।।
(३)
सुबह सुबह पैदा होती, दुपहर होत सयानी ।
पड़ता चन्दा का असर, मुंशी की दीवानी ।
फौजदार है अपना भाई ।
हरदिन बढती जाय कमाई ।
कत्ल ख़ुदकुशी में बदले, जाए बदल कहानी ।।
किशोर मन की उत्तेजना का बिम्ब है इस पोस्ट में .क्या कहने हैं ज़नाब के शव उच्छेदन में माहिर हैं आप मन के .
ReplyDeleteजोरदार ।
ReplyDeleteइधर प्रोत्साहन उधर,कसता जाए शिकंजा
ReplyDeleteएलएमजी आगे खड़ा,क्या निर्णय ले तमंचा
अनर्गल नहीं काम के छन्द रचे हैं आपने।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वाह!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 23-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-851 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
दिया साफ़ सन्देश,जिसे पढ़ना हो पढ़ ले,
ReplyDeleteरविकर के हैं तीर ,कलेजा छलनी कर दे !!
:):) बढ़िया प्रस्तुति
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