(१)
हौआ कर देते खडा, पौवा वाले लोग ।
भर झौवा खुद ले गए, बउवा पर अभियोग ।।
(२)
आहों से कैसे भरे, मन के गहरे जख्म ।
मरहम-पट्टी समय के, जख्म करेंगे ख़त्म ।।
(३)
(३)
गिरेबान में झांक ले, हो सुधार शुरुवात ।
खुद से कर खुद-गर्ज तू , सुधरेंगे हालात ।।
(४)
(४)
सर्वगुणी भी भटकता, काम करे बेकाम ।
खलनायक से नीतिगत, बातें व्यर्थ तमाम ।।समय के साथ
ज़िंदा है माँ जानता, इसका मिला सुबूत ।
आज पौत्र को पालती, पहले पाली पूत ।
पहले पाली पूत, हड्डियां घिसती जाएँ ।
करे काम निष्काम, जगत की सारी माएं ।
किन्तु अनोखेलाल, कभी तो हो शर्मिन्दा ।
दे दे कुछ आराम, मान कर मैया ज़िंदा ।।
२००वीं प्रस्तुति की बधाई...........
ReplyDeleteजलेबियों की मिठास कम ना हो कभी...............
सादर.
...दो सौवीं प्रस्तुति की बधाई ,
ReplyDeleteऐसे ही चलती रहे ,
धारदार कबिताई !!
दो सौवीं प्रस्तुति भली , दोहे देखे चार
ReplyDeleteचार दिशाओं में चले, जैसे मस्त बयार
पाहन को ज्यों काटती,निर्मल नदिया धार
धार दार दोहे उसी , तरह करें व्यवहार
हमको नित पढ़ने मिले, यूँ ही सत साहित्य
ब्लॉग जगत के गगन में, दमकें बन आदित्य
कवि रवि की छवि देख के ,पाठक हृदय विभोर
लगे सुहाना देख कर, चंदा संग चकोर.
मंगल -भावों के लिए, रविकर सदा कृतज्ञ |
Deleteतन-मन की आहुति पड़ी, इस साहित्यिक यज्ञ |
दो सौवीं प्रस्तुति की बधाई
ReplyDeleteहौआ कर देते खडा, पौवा वाले लोग ।
ReplyDeleteभर झौवा खुद ले गए, बउवा पर अभियोग ।।
(२)
संख्या पहुंचेगी अभी देखो कई हज़ार ,
बिना लिखे रहना हुआ रविकर का दुश्वार .
बढ़िया हैं . अनु -टिप्पणियाँ ब्लॉग दर ब्लॉग .