22 April, 2012

निर्णय में अफसर ना झिझको-

 अनर्गल तुकबंदी 
(१) 
अफसर और विधायक पकडे, नक्सल अब ना कमता ।
केंद्र कबीना पल्ला झाडे , नहीं मामला जमता ।
निर्णय में अफसर ना झिझको ।
मेरी क्या ? तुम छोडो मुझको ।
 माँ से अच्छी ममता माया, मैं जोगी ना रमता  ।

(२)
चार दिनों से पटा रहा था, डेटिंग खातिर लड़का ।
रेस्टोरेंट गया सन्डे को, काफी रोटी तड़का ।
थे आँखों में आँखे डाले ।
प्रेम पियासे  निगल निवाले ।
पर्स भूल आया था घर ही, मैनेजर खुब भड़का ।।

(३)
सुबह सुबह पैदा होती, दुपहर  होत सयानी ।
पड़ता चन्दा का असर,  मुंशी की दीवानी ।
फौजदार है अपना भाई ।
हरदिन बढती जाय कमाई ।
कत्ल ख़ुदकुशी में बदले, जाए बदल कहानी ।।

7 comments:

  1. किशोर मन की उत्तेजना का बिम्ब है इस पोस्ट में .क्या कहने हैं ज़नाब के शव उच्छेदन में माहिर हैं आप मन के .

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  2. इधर प्रोत्साहन उधर,कसता जाए शिकंजा
    एलएमजी आगे खड़ा,क्या निर्णय ले तमंचा

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  3. अनर्गल नहीं काम के छन्द रचे हैं आपने।

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  4. बहुत सुन्दर वाह!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 23-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-851 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  5. दिया साफ़ सन्देश,जिसे पढ़ना हो पढ़ ले,
    रविकर के हैं तीर ,कलेजा छलनी कर दे !!

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