02 May, 2012

पाठ-2 : अनर्गल तुकबंदी ।

 (1)
धन-दौलत हर दिन बढे, गुना चार सौ बीस ।
 शिकायतें बढती गईं, साहब जाते रीस |

जब हुआ नहीं बर्दाश्त |
तब एक्शन लेते फास्ट |

सेवा से निवृत किया,  कम्पलसरी खबीस ।।

 (2)
रविकर रूपये पाँच का, चूरन जाता खाय |
सच्चे दस्तावेज को,  आगे देत बढ़ाय |

गया चिरौरी करने |
साहब लगे अकड़ने  |

डिसमिस झट से कर दिया, चार्ज-सीट पकडाय ||

(3)
सात पुश्त करती रहें, अब हरदम आराम |
भाई को झट से दिया, सौ करोड़ का काम |

जोड़ी कौड़ी कौड़ी |
भैया हुआ करोड़ी |

मचे तहलका किन्तु जब, हो आराम हराम ||

7 comments:

  1. बढ़िया मिक्सचर है..!

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  2. (3)
    सात पुश्त करती रहें, अब हरदम आराम |
    भाई को झट से दिया, सौ करोड़ का काम |

    जोड़ी कौड़ी कौड़ी |
    भैया हुआ करोड़ी |

    मचे तहलका किन्तु जब, हो आराम हराम ||
    कृपया यहाँ भी पधारें -
    रोग जो अधेड़ों को ले आता है बचपन की गलियों में
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_03.html

    Posted 3rd May by veerubhai

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  3. बढ़िया प्रस्तुति .
    मिले पराया माल तो, लूट खाय बेदाम ।।कृपया यहाँ भी पधारें -
    रोग जो अधेड़ों को ले आता है बचपन की गलियों में
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_03.html

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  4. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति | शानदार रचना |

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  5. घूस और बेईमानी का मचा है इतना ज़ोर।
    जिधर भी जाओ है वहां अंधेरा चहुं ओर।

    ऐसी हुई व्यवस्था।
    कि सूझे न रस्ता।

    सांप सूंघ जाए इन्हें,जो पब्लिक का हो शोर।।

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  6. lajawaab!

    per padya k is roopakaar ko kya bolte hain??

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    1. ऊपर की दो पंक्तियाँ तुकांत |
      फिर दो पंक्तियाँ तुकांत छोटी |
      फिर एक लम्बी पंक्ति -
      तुकांत -पहली दो पंक्तियों सी |
      मुझे तो पता नहीं -
      अचानक ही यह लिखने लगा -
      मैं तो अनर्गल तुकबंदी ही बोलूँगा इसे |
      क्योंकि तुक पर ज्यादा जोर है-
      अर्थ पर थोडा कम |
      नए कवियों को रचना करना आसान लगेगा -

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