(1)
धन-दौलत हर दिन बढे, गुना चार सौ बीस ।
शिकायतें बढती गईं, साहब जाते रीस |
जब हुआ नहीं बर्दाश्त |
तब एक्शन लेते फास्ट |
धन-दौलत हर दिन बढे, गुना चार सौ बीस ।
शिकायतें बढती गईं, साहब जाते रीस |
जब हुआ नहीं बर्दाश्त |
तब एक्शन लेते फास्ट |
सेवा से निवृत किया, कम्पलसरी खबीस ।।
(2)
रविकर रूपये पाँच का, चूरन जाता खाय |
सच्चे दस्तावेज को, आगे देत बढ़ाय |
गया चिरौरी करने |
साहब लगे अकड़ने |
डिसमिस झट से कर दिया, चार्ज-सीट पकडाय ||
(3)
सात पुश्त करती रहें, अब हरदम आराम |
भाई को झट से दिया, सौ करोड़ का काम |
जोड़ी कौड़ी कौड़ी |
भैया हुआ करोड़ी |
मचे तहलका किन्तु जब, हो आराम हराम ||
बढ़िया मिक्सचर है..!
ReplyDelete(3)
ReplyDeleteसात पुश्त करती रहें, अब हरदम आराम |
भाई को झट से दिया, सौ करोड़ का काम |
जोड़ी कौड़ी कौड़ी |
भैया हुआ करोड़ी |
मचे तहलका किन्तु जब, हो आराम हराम ||
कृपया यहाँ भी पधारें -
रोग जो अधेड़ों को ले आता है बचपन की गलियों में
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_03.html
Posted 3rd May by veerubhai
बढ़िया प्रस्तुति .
ReplyDeleteमिले पराया माल तो, लूट खाय बेदाम ।।कृपया यहाँ भी पधारें -
रोग जो अधेड़ों को ले आता है बचपन की गलियों में
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_03.html
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति | शानदार रचना |
ReplyDeleteघूस और बेईमानी का मचा है इतना ज़ोर।
ReplyDeleteजिधर भी जाओ है वहां अंधेरा चहुं ओर।
ऐसी हुई व्यवस्था।
कि सूझे न रस्ता।
सांप सूंघ जाए इन्हें,जो पब्लिक का हो शोर।।
lajawaab!
ReplyDeleteper padya k is roopakaar ko kya bolte hain??
ऊपर की दो पंक्तियाँ तुकांत |
Deleteफिर दो पंक्तियाँ तुकांत छोटी |
फिर एक लम्बी पंक्ति -
तुकांत -पहली दो पंक्तियों सी |
मुझे तो पता नहीं -
अचानक ही यह लिखने लगा -
मैं तो अनर्गल तुकबंदी ही बोलूँगा इसे |
क्योंकि तुक पर ज्यादा जोर है-
अर्थ पर थोडा कम |
नए कवियों को रचना करना आसान लगेगा -