(1)
वात पित्त कफ बन गए, द्वेष प्रपंच घमंड ।
धन-दौलत कर ली जमा, कर समाज शत-खंड |
धन-दौलत कर ली जमा, कर समाज शत-खंड |
सब कुछ लिया बटोर |
चल दिल्ली की ओर ।
खादी तन-पर डाल के, हाँक रहा बरबंड ||
(2)
किसकी बातें करता है कवि,कल्पनाशक्ति जब क्षीण हुई ।
सम्वेदन-शून्य हुई काया, वह ज्योती-तीक्ष्ण विदीर्ण हुई ।
जीवन में वीरानी छाई ।
उनकी याद बिराने आई ।
गाने और बहाने क्या, वो दुश्मन घर उत्तीर्ण हुई ।।
सुन्दर अवलोकन है आपका !
ReplyDeleteनिःशब्द हूँ आपकी रचनाधर्मिता देखकर!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
Bahut hi sundar prastuti .. Ravikar ji..
ReplyDeleteसही जा रहे हो ! वाह ! वाह !
ReplyDeleteबहुत खूब सर!
ReplyDeleteसादर
अती सुंदर
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