03 May, 2012

वो दुश्मन घर उत्तीर्ण हुई -

(1)
वात पित्त कफ बन गए, द्वेष प्रपंच घमंड ।
धन-दौलत कर ली जमा, कर समाज शत-खंड |

सब कुछ लिया बटोर | 

चल दिल्ली की ओर ।

खादी तन-पर डाल के, हाँक रहा बरबंड ||

(2)
किसकी बातें करता है कवि,कल्पनाशक्ति जब क्षीण हुई ।
सम्वेदन-शून्य हुई काया, वह ज्योती-तीक्ष्ण विदीर्ण हुई ।

जीवन में वीरानी छाई ।
 उनकी याद बिराने आई ।
   
गाने और बहाने क्या, वो दुश्मन घर उत्तीर्ण हुई ।।  

6 comments:

  1. सुन्दर अवलोकन है आपका !

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  2. निःशब्द हूँ आपकी रचनाधर्मिता देखकर!
    बहुत बढ़िया!

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  3. सही जा रहे हो ! वाह ! वाह !

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  4. बहुत खूब सर!


    सादर

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