(1)
वे सर्प सारे झूमते --
फुफकारते--
डस रहे -
चिघ्घाड़ते
नाचते--
धिक्कारते--
बज रही सी बीन हूँ मैं ??
गमगीन हूँ मैं ?
(2)
दिन ढला
मद चढ़ा
बोतलें खुली
बत्तियां जली
मदमाते-
गुर्राते
डगमगाते
चखने लगे
नमकीन हूँ मैं ।
गमगीन हूँ मैं ।
(3)
भैंस जाती रही-
पनियाती रही ।
बहस जारी है
भारी तैयारी है ।
लटके झटके
हुंकारते
चिल्लाते
ठोकते
भौंकते
बड़ी सभा की
सीन हूँ मैं
गमगीन हूँ मैं ।।
चिल्लाते
ReplyDeleteठोकते
भौंकते
beautiful poem
बोतलें खुली
ReplyDeleteबत्तियां जली
मदमाते-
गुर्राते
डगमगाते
चखने लगे
वाह...बेहतरीन रचना...
नीरज