कार्टून-3
कार्टून के भूत से, लक्ष्मण है हैरान |
दलित प्रेम के प्रेत ने, बाबा ले ली जान |
दलित प्रेम के प्रेत ने, बाबा ले ली जान |
बाबा ले ली जान, बड़ी चुड़ैल भी गुस्सा |
गिने "चुने" शैतान, भरा भेजे में भुस्सा |
भागा रविकर भूत, लंगोटी नहीं संभाली |
रही भली मजबूत, ढील हो खुली बवाली ||
कार्टून-2
कार्टून में हैं रखे, नोट वोट के थाक |
जर-जमीन लाकर पड़े, है जमीर पर लाक |
कार्टून में हैं रखे, नोट वोट के थाक |
जर-जमीन लाकर पड़े, है जमीर पर लाक |
है जमीर पर लाक , नाक हर जगह घुसेंड़ें |
बड़े बड़े चालाक, चलें लेकिन बन भेड़ें |
रविकर रक्षक कौन, जहर जब भरा खून में |
कार्टून नासमझ, भिड़े इक कार्टून में ||
कार्टून-1
जनता खड़ी निहारती, चाचा चाबुक तान |
हैं घोंघे को ठेलते, लें बाबा संज्ञान |
लें बाबा संज्ञान, रोल हम सभी सराहें |
संविधान निर्माण , भरे संसद क्यूँ आहें |
ईस्वी सन उनचास, किये खुद नेहरु कब का ||
कार्टून के भूत से, लक्ष्मण है हैरान |
ReplyDeleteदलित प्रेम के प्रेत ने, बाबा ले ली जान |
ha ha ha mast bhina
sab tarika main muddo se dhayn bhatkane ki
http://blondmedia.blogspot.in/
रविकर जी,
ReplyDeleteकार्टून-3
कविताई में चुन-चुनकर शब्दों का प्रयोग व्यंग्य को भी मज़बूत बना रहा है. 'कार्टून का भूत', 'दलित प्रेम का प्रेत', 'बड़ी चुड़ैल', 'चुने शैतान',
साथ में एक मुहावरे [भागते भूत की लंगोटी भली] को अपने हिसाब से बाखूबी तोड़-मरोड़कर प्रयोग किया है. बहुत पसंद आया.
लेकिन एक चेतावनी भी सुन लीजिये : "आप भी खतरनाक व्यंग्य रच रहे हैं ये सब किससे पूछकर कर रहे हैं... क्या आपने शिक्षामंत्री से परमीशन ली है? यदि उनको 'बड़ी चुड़ैल' और 'चुने शैतान' का सही-सही मतलब समझ आ गया तो आपकी भी खैर नहीं है. समझे.
सब जानत हैं ,बड़ी चुडेल और काग भगोड़ा कौन ,
Deleteमंद मति है बालक कौन ,
@ रविकर जी, क्या सच में ... नेहरू जी ने खुद ही उस पुस्तक का विमोचन किया था !!!
ReplyDeleteवाह... क्या खबर है.... तब तो इस कार्टून पर शिक्षामंत्री साहब को माफी नहीं मांगनी चाहिए थी.
क्या दलितों को ये लग रहा है कि नेहरू जी बाबा साहब को चाबुक मार रहे हैं.
या फिर दलितों को बाबा साहब को घोंघे पर बैठने पर आपत्ति है...
अरे!...उन्हें तो खुश होना चाहिए कि बाबा साहब सवारी कर रहे हैं... जबकि नेहरू जी पैदल हैं.
जनता कितनी खुश(हाल) है कार्टून में... यानी कांग्रेस का शासन सभी को पसंद रहा है.
जी सत्य |
Deleteसौ प्रतिशत सत्य ||
जनता तो पता नहीं चीख रही है या नहीं ... हां नेताओं कों जरूर खुजली हो रही है ...
ReplyDeleteआखिर असली जरुरतमंद कौन है
ReplyDeleteभगवन जो खा नही सकते या वो जिनके पास खाने को नही है
एक नज़र हमारे ब्लॉग पर भी
http://blondmedia.blogspot.in/2012/05/blog-post_16.html
politicians are afraid that someone will draw their cartoon, but no need to draw they are living cartoons.
ReplyDeleteचुनचुन चाबुक मारते, चुने चुनो को आप।
ReplyDeleteहाथ न यूं ही डालिए, बिल में होते साँप॥ :)))
यही प्रजा तंत्रीय फतवा मेरे लाल ,मत कर मलाल ,
ReplyDeleteहोता यह तंत्र ,प्रजा तंत्र तो लगती क्यों आपातकाल .