(1)
मन-रेगा रेगा अरे, तन रेगा खा भांग |
रक्त चूस खटमल करें, रक्तदान का स्वांग |
रक्तदान का स्वांग, उदर-जंघा जन-मध्यम |
उटपटांग दो टांग, चढ़े अनुदानी उत्तम |
पर हराम की खाय, पाँव हाथी सा फूला |
जन जीवन अलसाय, तथ्य हर गाँव कबूला ||
(2)
(2)
रेगा होते जा रहे, लाभुक और मजूर |
बैठ कमीशन खा रहे, बिना काम भरपूर |
बिना काम भरपूर, मशीनें करैं खुदाई |
चढ़े चढ़ावा दूर, कहीं कागदे कमाई |
वैसे ग्राम-विकास, करे यूँ खूब नरेगा |
किन्तु श्रमिक अलसात, खेत-घर आधे रेगा ||
बिना काम भरपूर, मशीनें करैं खुदाई |
ReplyDeleteचढ़े चढ़ावा दूर, कहीं कागदे कमाई |
....बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...
बहुत बढ़िया,नरेगा की कहानी !!
ReplyDeleteसुंदर सामयिक अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteहवा हवाई रच रही, हवा महल सरकार।
मनरेगा सँग रेंगकर, मन रे गा मल्हार।
सादर
वैसे ग्राम-विकास, करे यूँ खूब नरेगा |
ReplyDeleteकिन्तु श्रमिक अलसात, खेत-घर आधे रेगा ||.sundar....saadar
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteअच्छी बखिया उधेड़ी आपने।
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