साइबर कैफे लखनऊ से -
दिल्ली में संतोष जी, मिले मित्र अविनाश ।
इन दोनों परिवार की, बातें बेहद ख़ास ।
बातें बेहद ख़ास, मटरगस्ती में पहला ।
दीदी देती डांट, मगर मोबाइल टहला । net-surfing
एक्टिंग में बेशर्म, लगे है भीगी बिल्ली ।
रविकर के मानिंद, हिलाता घूमे दिल्ली ।।
धमाचौकड़ी थी मची, बच्चे बनते मित्र ।
खेलकूद खेले खले, खींचे चित्र -विचित्र ।
खींचे चित्र विचित्र, बना मामा का रिश्ता ।
लेते हाथों-हाथ, समझ के भला फ़रिश्ता ।
रविकर दे आशीष, सदा बढ़ते ही जाएँ ।
मिले पूर्ण संतोष, लक्ष्य अपने सब पायें ।।
शेष धनबाद से
शेष धनबाद से
यार बिना चैन कहाँ रे................
ReplyDeleteसुन्दर
आज आपकी दीदी भी लखनऊ में हैं ...:-)
ReplyDelete...रविकर कहे जलेबी और खिलाये भी ,
ऐसा दिन दिल्ली में क्यों रोज़ न आये जी ?
बढ़िया यात्रा रही
ReplyDeleteभारत दर्शन बनाम ब्लॉग/ब्लॉगर दर्शन। रविकर जी के दर्शनों की साध पूरी हुई।
ReplyDeleteअन्नाभाई की बात बता रहे हैं
ReplyDeleteबोतल क्यों नहीं दिखा रहे हैं
बिना बोतल वो अब सोने भी
कहाँ जा पाते हैं
सपने में भी बोतल बोतल चिल्लाते हैं।
beautiful
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