सर्ग-1
अथ - शांता
भाग-1
जय-जय जय विघ्नेश, पूर्ण कथा कर पावनी ||1||
वन्दऊँ गुरुवर श्रेष्ठ, कृपा पाय के मूढ़ मति,
गुन-गँवार ठठ-ठेठ, काव्य-साधना में रमा ||2||
गोधन-गोठ प्रणाम, कल्प-वृक्ष गौ-नंदिनी |
गोकुल चारो धाम, गोवर्धन गिरि पूजता ||3||
वेद-काल का साथ, गंगा सिन्धु सरस्वती |
ईरानी हेराथ, है सरयू समकालिनी ||4||
राम-भक्त हनुमान, सदा विराजे अवधपुर |
सरयू होय नहान, मोक्ष मिले अघकृत तरे ||5||
करनाली / घाघरा नदी का स्रोत्र
करनाली का स्रोत्र, मानसरोवर अति-निकट |
करते जप-तप होत्र, महामनस्वी विचरते ||6||
क्रियाशक्ति भरपूर, पावन भू की वन्दना |
राम भक्ति में चूर, मोक्ष प्राप्त कर लो यहाँ ||7||
करनाली / घाघरा नदी के स्रोत्र के पास मान-सरोवर
सरयू अवध प्रदेश, दक्षिण दिश में बस रहा |
सरयू अवध प्रदेश, दक्षिण दिश में बस रहा |
हरि-हर ब्रह्म सँदेश, स्वर्ग सरीखा दिव्यतम ||8||
पूज्य अयुध भूपाल, रामचंद्र के पूर्वज |
गए नींव थे डाल, बसी अयोध्या पावनी ||9||
शुक्ल पक्ष नवमी तिथी, पावन कातिक मास |
दोहा
शुक्ल पक्ष नवमी तिथी, पावन कातिक मास |
होय नगर की परिक्रमा, मन श्रृद्धा-विश्वास ||
मर्यादा आदर्श गुण, अपने हृदय उतार |
श्री राम के सामने, लम्बी लगे कतार |
पुरुषोत्तम सरयू गए, होते अंतर्ध्यान |
त्रेता युग का अवध तब, हुआ पूर्ण वीरान |
सद्प्रयास कुश ने किया, बसी अयोध्या वाह |
सदगृहस्थ वापस चले, पुन: अवध की राह |
कृष्ण रुक्मणी अवध में, आये द्वापर काल |
पुरुषोत्तम के चरण में, गये सुमन शुभ डाल ||
कलयुग में सँवरी पुन:, नगरी अवध महान |
वीर विक्रमादित्य से, बढ़ी नगर की शान ||
देवालय फिर से बने, बने सरोवर कूप |
स्वर्ग सरीखा सज रहा, अवध नगर का रूप ||
पूरी कथा का लिंक -
waah ..subah-subah...man prasan ho gaya bhajan se...
ReplyDeleteसोरठे और दोहे,
ReplyDeleteमोहे तो दोऊ मोहे !
इस श्रृंखला को आगे बढ़ाइए।
ReplyDeleteआपेन बिल्कुल नये विषय पर कलम चलाई है!
भाई रविकर जी फैजाबादी लेखन के प्रति आपके समर्पण और प्रति -बढता को सलाम .सरयू अवध प्रदेश, दक्षिण दिश में बस रहा |
ReplyDeleteहरि-हर ब्रह्म सँदेश, स्वर्ग सरीखा दिव्यतम ||8|बढ़िया अप्रतिम प्रस्तुति .
कृपया यहाँ भी पधारें -
पौधे भी संवाद में, रत रहते दिन रात |
गेहूं जौ मिलते गले, खटखटात जड़ जात |
ram ram bhai
बुधवार, 13 जून 2012
हवा में झूमते लहलहाते वे परस्पर संवाद करते हैं
हवा में झूमते लहलहाते वे परस्पर संवाद करते हैं
पौधे भी संवाद में, रत रहते दिन रात ,गेहूं जौ मिलते गले, खटखटात जड़ जात --|-भाई रविकर जी फैजाबादी
http://veerubhai1947.blogspot.in/
informative post with nice poem
ReplyDeleteवाह !!
ReplyDeleteसमापन की और बढ़ता बढ़िया काव्यांश कथांश .
ReplyDeleteफिर से चर्चा मंच पर, रविकर का उत्साह |
ReplyDeleteसाजे सुन्दर लिंक सब, बैठ ताकता राह ||
--
शुक्रवारीय चर्चा मंच ।
भारत की हर दूसरी बहन यूं ही तमाम कुर्बानी देने के बावजूद गुमनाम बनी रहती है। शांता की किस्मत में भी ऐसी ही कुर्बानी थी। बावजूद इसके कि वो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र की बहन थी और रामजन्म को संभव बनाने के लिए उसने बड़ा बलिदान दिया था। इस गुमनाम पात्र जो लेकर एक छोटी सी कविता रचने की सोची थी। कर न पाया। आप तो पूरा काव्य ही रच रहे हैं। शुभकामनाएं।
ReplyDeleteFully agree with Manoj ji. Sadhuwaad Sir.
ReplyDeleteबहुत ही उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ... आभार
ReplyDeleteवाह, अयोध्या का काव्यमय इतिहास बडा अच्छा लगा । शांता के बारे में मुझे तो कुछ बी नही मालूम पर अब जान जायेंगे ।
ReplyDeleteआभार आप सभी का |
ReplyDeleteकथा पढ़कर उत्साह बढाते रहें |
सादर |
बढ़िया कथा |
ReplyDeleteमहोदय !!
अपने बाबा से पूछा |
अध्यापक गन से भी पूछा |
किसी को पता नहीं की राम जी कोई बहिन भी थी |
आभार |
पढ़ रहा हूँ |