पावे रक्षक भ्रूण का, दीखे शत्रु अनेक ||
चारों दिशा उदास हैं, फैला है आतंक |
जिम्मेदारी कौन ले, मारे दुश्मन डंक ||
जिम्मेदारी कौन ले, मारे दुश्मन डंक ||
सारे देवी-देवता, चिंतित रही मनाय |
चार दिनों से अनमयस्क, बैठे मन्दिर जाय ||
जीवमातृका वन्दना, माता के सम पाल |
जीवमंदिरों को सुगढ़, रखती सदा संभाल ||
शिव और जीवमातृका
धनदा नन्दा मंगला, मातु कुमारी रूप |
बिमला पद्मा वला सी, महिमा अमिट-अनूप ||
माता करिए तो कृपा, करूँ तोर अभिषेक |
शत्रु दृष्टि से ले बचा, बच्चा पाऊं नेक ||
संध्या को रनिवास में, रानी रह-रह रोय |
उच्छवासें भरती रही, अँसुवन बदन भिगोय ||
दशरथ को दरबार में, हुई घरी भर देर |
कौशल्या ना दीखती, अन्दर घुप्प-अंधेर ||
तभी सुबकने की पड़ी, कानों में आवाज |
दासी को आवाज दे, पूँछ रहे महराज ||
हुआ उजाला कक्ष में, मुखड़ा लिए मलीन |
रानी लेटी भूमि पर, दिखती अति-गमगीन ||
राजा विह्वल हो गए, संग भूमि पर बैठ |
रानी को पुचकारते, सत्य प्रेम की पैठ ||
बोलो रानी बेधड़क, खोलो मन के राज |
कौन रुलाया है तुम्हें, करे कौन नाराज ??
निकले अगर भड़ास तो, बढती जीवन-साँस ।
आँसू बह जाएँ अगर, कामे दर्द एहसास ।।
निकले अगर भड़ास तो, बढती जीवन-साँस ।
आँसू बह जाएँ अगर, कामे दर्द एहसास ।।
मद्धिम स्वर फिर फूटता, हिचकी होती तेज |
अपने बच्चे को भला, कैसे रखूं सहेज ||
राजा सुनकर हर्ष से, रानी को लिपटाय |
कहते चिंता मत करो, करूं सटीक उपाय ||
अगली प्रात: वे गए, गुरु वशिष्ठ के पास |
थे सुमंत भी साथ में, मंत्री सबसे ख़ास ||
बनी योजना इस तरह, दुश्मन धोखा खाय ||
रानी के इस गर्भ को, राखे नजर बचाय ||
अगले दिन दरबार में, आया इक सन्देश |
कौशल्या की मातु को, पीड़ा स्वास्थ-कलेस ||
डोली सजकर हो गई, कौला भी तैयार |
छद्म वेश में सेविका, बैठी अति-हुशियार ||
वक्षस्थल पर झूलता, वही पुराना हार |
जिसको लेकर था भगा, सुग्गासुर अय्यार ||
सेना के सँग हो विदा, डोली चलती जाय |
गिद्धराज ऊपर उड़े, पंखों को फैलाय ||
अभिमंत्रित कर महल को, कौशल्या के पास |
कड़ी सुरक्षा में रखा, दास-दासियाँ ख़ास ||
खर-दूषण के गुप्तचर, छोड़े अपनी खोह |
डोली के पीछे लगे, लेने को तब टोह ||
छद्म-वेश में माइके, धर कौशल्या रूप |
रानी हित दासी करे, अभिनय सहज अनूप ||
वर्षा-ऋतु फिर आ गई, सरयू बड़ी अथाह |
दासी उत्तर में रही, दक्षिण में उत्साह ||
देख सकें औलाद को, हुई बलवती चाह |
दशरथ सबपर रख रहे, चौकस कड़ी निगाह ||
सात मास बीते मगर, गोद-भराई भूल |
कनक महल रक्षित रहा, रानी के अनुकूल ||
नवरात्रि के पर्व में, परजा में उल्लास |
कौशल्या कर न सकी, पर अबकी उपवास ||
शरद पूर्णिमा बीतती, अमृत वर्षा होय |
रानी आँगन में जमी, काया रही भिगोय ||
धीरे धीरे सर्दियाँ , रही धरा को घेर |
शीत लहर चलने लगी, यादें रही उकेर ||
पीड़ा झूठे प्रसव की, होंठ रखे वो भींच |
रानी सिसकारी भरे, जान न पावे नींच ||
रानी हर दिन टहलती, करती नित व्यायाम |
पौष्टिक भोजन खाय के, करे तनिक आराम ||
कोसलपुर में उस तरफ, दासी का वह खेल |
खर-दूषण का गुप्तचर, रहा व्यर्थ ही झेल ||
शुक्ल फाल्गुन पंचमी, मद्धिम बहे बयार |
सूर्यदेव सिर पर जमे, ईश्वर का आभार ||
पुत्री आई महल में, कौशल्या की गोद |
राज्य ख़ुशी से झूमता, छाये मंगल-मोद ||
एक पाख के बाद में, खबर पाय दश-शीस |
खर दूषण को डांटता, सुग्गा सुर पर रीस ||
कन्या के इस जन्म से, रावण पाता चैन |
चेतो क्षत्रपगण सभी, निकसे तीखे बैन ||
छठियारी में सब जमे, पावें सभी इनाम |
स्वर्ण हार पाए वहां, दासी का शुभ काम ||
गिद्धराज गिद्धौर को, कर दशरथ का काम |
सम्पाती से जा मिले, होते शोध तमाम ||
नई-नई दूरबीन से, देख सकें अति दूर |
प्रक्षेपित कर यान को, भेजें देश सुदूर ||
गिद्धराज गिद्धौर को, कर दशरथ का काम |
सम्पाती से जा मिले, होते शोध तमाम ||
नई-नई दूरबीन से, देख सकें अति दूर |
प्रक्षेपित कर यान को, भेजें देश सुदूर ||
मालिश करने के लिए, पहुंची कौला धाय |
छूते ही इक पैर को, कन्या खुब अकुलाय ||
कौशल्या ने वैद्य को, आखिर लिया बुलाय |
जांच परख के बाद में, वैद्य रहा सकुचाय ||
एक पैर में दोष है, कन्या होय अपंग |
सुनकर कडुवे वचन को, कौशल्या थी दंग ||
रविकर फैजाबादी
रविकर फैजाबादी
गहरी बातें.
ReplyDeleteसंग्रहणीय सामग्री...!
ReplyDeletesangrahniy v sarthak prastuti.धिक्कार तुम्हे है तब मानव ||
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति है भाई साहब .आपकी कुंडली विषय के कैप्स्यूल प्रस्तुत कर देती है सारे सूत्रण लिए रहती है .सेहत और साहित्य ,विज्ञान और साहित्य का इस से भला संगम और क्या हो सकता है .
ReplyDeleteवीरुभाई ,ट्रेवल लोज ,रूम नंबर २३५ ,ट्रेवर सिटी ,मिशिगन स्टेट ,यु .एस .ए .
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अति उत्तम...
ReplyDeleteसादर आभार।
परमशान्ता की कथा, नहीं जानते लोग।
ReplyDeleteखोज पुराने तत्य को, हरा हृदय का रोग।।
शब्द नहीं हैं ।
ReplyDeleteशांता कथा सुना रहे कवि वर रविकर राज
ReplyDeleteएकोएक प्रसंग का वर्णन सुख कर आज ।